मंगलवार, अप्रैल 16, 2019

लिफाफों का दुःख !!

लिफाफों का दुःख
चिठ्ठियों के दुःख से कभी कम नहीं रहा
डाकिए दो दुःखों के बीच पुल बनाते रहे सदा
और गांव की सरहद पर बैठा देवता
एक हज़ार साल पहले किसी के प्रेम में फांसी पर लटक गया था

मेरे पास तुम्हारी दो ही चीजें थीं
एक तुम्हारी स्मृति
और दूसरी तुम्हारी स्मृति की स्मृति
याद और याद की याद

ये ऐसे ही रहा जैसे
दुःख के भीतर दुःख
लिफ़ाफ़े के भीतर चिट्ठी
डाकिए के भीतर पुल
और सरहद पर बैठे देवता के भीतर प्रेमी

अनुराग अनंत

1 टिप्पणी:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !