स्वप्न मेरा संस्कार था
मैंने जागते हुए स्वप्न देखे
ये रात का अपमान था
और नींद पर लानत
रात ने श्रापा मुझे
और नींद ने धिक्कार दिया
मैं जागते हुए बरसात की रातों को रोता रहा
लोग चिंतित थे
कि पिछवाड़े बहती नदी दिन-ब-दिन खारी क्यों होती जा रही है
सातों समंदर सप्त प्रेमियों के तप्त अश्रु हैं
जो उनकी आत्मा के गड्ढ़ों में एकत्र हुआ
बरसात की रोती रातों में
तुम्हारा स्पर्श हथेलियों पर
भूखे भिखारी की तरह हाय हाय करता रहा
और तुम्हारे घर से दस कदम की दूरी पर
पान की दुकान में एक घायल इंतज़ार तिल तिल कर मरता रहा
ये बिखरे तंतुओं की तरह बिखरी बातें
रात भर जोड़ता रहता हूँ
मेरे भीतर उग आए पहाड़ पर
जागते हुए पत्थर तोड़ता रहता हूँ
जिस रात मैं पत्थर से पानी हो सकूँगा
बस उसी रात फिर से सो सकूँगा
अनुराग अनंत
मैंने जागते हुए स्वप्न देखे
ये रात का अपमान था
और नींद पर लानत
रात ने श्रापा मुझे
और नींद ने धिक्कार दिया
मैं जागते हुए बरसात की रातों को रोता रहा
लोग चिंतित थे
कि पिछवाड़े बहती नदी दिन-ब-दिन खारी क्यों होती जा रही है
सातों समंदर सप्त प्रेमियों के तप्त अश्रु हैं
जो उनकी आत्मा के गड्ढ़ों में एकत्र हुआ
बरसात की रोती रातों में
तुम्हारा स्पर्श हथेलियों पर
भूखे भिखारी की तरह हाय हाय करता रहा
और तुम्हारे घर से दस कदम की दूरी पर
पान की दुकान में एक घायल इंतज़ार तिल तिल कर मरता रहा
ये बिखरे तंतुओं की तरह बिखरी बातें
रात भर जोड़ता रहता हूँ
मेरे भीतर उग आए पहाड़ पर
जागते हुए पत्थर तोड़ता रहता हूँ
जिस रात मैं पत्थर से पानी हो सकूँगा
बस उसी रात फिर से सो सकूँगा
अनुराग अनंत
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