बुधवार, अप्रैल 17, 2019

तो समझो फिर 'झुक गया देश' !!

उधर जिधर हत्यारे हैं
गर्व में तने गर्वित मस्तक हैं
चंदन से सुशोभित भाल है
तन पर मरे हुए सिंहों की खाल है
उधर इंसान नहीं
इंसानों के ख़िलाफ़ साजिशें है
उधर अगर 'झुक गया देश'
तो समझो फिर 'झुक गया देश'

अनुराग अनंत

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