गुरुवार, दिसंबर 28, 2017

दिल की बात !!

मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि
मैं आजतक वो नहीं कह सका
जो मुझे कहना था

मैं अकेला नहीं हूँ
तुम भी हो मेरे साथ
जो नहीं कह पाया है दिल की बात

फ़र्क बस इतना है कि
मैं ये बात कह पा रहा हूँ
और तुम हो कि
इतना भी नहीं कह पाते

मुझे मेरी ख़ामोशी में चुभन महसूस होती है
इसलिए मैं कविता बनाता हूँ

तुम्हें तुम्हारी ख़ामोशी महसूस ही नहीं होती
इसलिए तुम बेवकूफ बनाते हो
खुद को भी
और दुनिया को भी

अनुराग अनंत

सोमवार, दिसंबर 25, 2017

प्यार...!!

प्यार से
सबसे पहले आधा 'प' अलग हुआ
और बचा सिर्फ 'यार'
जिसमे बाद में
'र' रुपये में बदल गया
और 'या' से याद ही बची सीने में

और तुम हो कि पूछते हो
मजा आ रहा है जीने में ?

अनुराग अनंत

मैं एक रहस्य ही हूँ..!!

मैं खुद को एक नदी समझता था
और वो मुझे एक तालाब समझती थी
मुझे लगता था
मैं नदी की तरह आगे निकल जाऊंगा
और उसे लगता था कि
मैं तालाब की तरह वहीँ रह जाऊंगा

वो ना तालाब थी, ना नदी
वो पानी थी
और उसके जाने के बाद
मैं ना तालाब रहा, ना नदी

मैं क्या हूँ ?
अब ये एक रहस्य है

और शायद
मैं एक रहस्य ही हूँ !!

अनुराग अनंत

बुधवार, दिसंबर 20, 2017

एक अधूरी सी कहानी..!!

एक अधूरी रात
अधूरा इश्क़
अधूरी ज़िंदगी

एक अधूरी मुलाकात
अधूरा ख़ुदा
अधूरी बंदगी

एक अधूरी वाह
अधूरी आह
अधूरी चाह है

एक अधूरी नदी
अधूरा समंदर
अधूरी थाह है

एक अधूरा सा कदम है
एक अधूरा सा सनम है
एक अधूरे से हम हैं

एक अधूरा सा ख़्वाब है
एक अधूरा सा जवाब है
एक अधूरा इन्तेख़ाब है

एक अधूरा सा अधूरापन अधूरा रह गया है
कोई अधूरी बात में अधूरी बात अपनी कह गया है
ये अधूरा खंडहर, अधूरा खड़ा, अधूरा ढह गया है
ये अधूरा सा अश्क़, अधूरा है, अधूरा बह गया है

यह अधूरापन पूरा कर रहा है जिंदगानी
क्या है मेरा तआरुफ़ जो पूछो ,तो बताऊं !
एक अधूरी सी व्यथा है, एक अधूरी सी कहानी ।।

अनुराग अनंत

नैना तेरे दरस बिना...!!

बांझ हुए नैना तेरे दरस बिना
इन नैनन का यारा अब क्या करना

इन नैनन से देखा तुझको
अब कुछ देखन को न जिया करे
तुझको देख के जीते मरते थे
अब कैसे जिएं और कैसे मरें
नयनों से अश्क़ झरे ऐसे
जैसे झरता हो कोई झरना

बांझ हुए नैना तेरे दरस बिना....

नयना के सब रंग उतर गए
सपने सब के सब बिखर गए
तुम रंग थे मेरे इन नयनों के
तुम बिन बेरंग हुए नयना
मेरे नयना सजना भूल गए
जब से बिछड़े तुम सजना

बांझ हुए नैना तेरे दरस बिना.....

न देखूँ जग न याद जगे
न तुझको देखन की लाग लगे
जो तू ही मुझसे बिछड़ गया
तो क्यों न बिछड़ें ये नयना
जो तू ही जीवन मे रहा नहीं
तो फिर इन नयनों का क्या रहना

बांझ हुए नैना तेरे दरस बिना
इन नैनन का यारा अब क्या करना....

अनुराग अनंत

गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

या रब अब दंगा न दीजो !!

हमसे उन्होंने कहा
कि हमें मंदिर बनाना है
हमें मस्जिद बनाना है
उन्होंने हमें बताया
कि हमारे राम को खतरा है
हमारे रहीम पर मुसीबत है
उन्होंने हमें दलीलें दीं
कि हमारे धर्म को मिटाने की साजिश हो रही है
हमारे दीन को कोई खतम करना चाहता है
उन्होंने हमसे कहा
कि हमें ये सब बचाने के लिए आपस में लड़ना पड़ेगा
और हम उनकी बात मन कर लड़ने लगे
लड़ाई हुई, दंगे हुए
लड़ाई-दंगों में
मंदिरें टूटीं
मस्जेदें टूटीं
राम मरा
रहीम क़त्ल हुआ
हमारा धर्म और दीन छाती पीट-पीट कर हमारी लाशों पर रोते रहे

और जिन्होंने हमें लड़ने के लिए कहा था
वो हमारे घरों में हमारी बहन-बेटियों की इज्जत से खेलते रहे
हमारे घर लूटते रहे
चुनाव जीत कर सरकार बनाते रहे
टीवी पर आते-जाते रहे
अखबारों पर मुस्कुराते रहे
बड़ी-बड़ी इमारतों पर झंडा फहराते रहे
राष्ट्रगान गाते रहे
यज्ञ-हवन और अभिषेक करते रहे
अजान-नमाज़ और रोज़े अता करते रहे

और हम जो जिन्दा आदमी थे कभी
महज़ गीनती और तारीख भर हो कर रह गए

अनुराग अनंत

हम भारत के भूखे लोग..!!

पेट जब पीठ पर टिक जाता है
तो कोई तर्क नहीं टिकता है
चाँद, चाँद नहीं रहता
चाँद रोटी हो जाता है।

आदमी जितना निरीह होता जाता है
उतना ख़तरनाक़ और खूंखार हो जाता है
भूखा आदमी सवाल हो जाता है,
बवाल हो जाता है
दीवार हो जाता है

वो चौराहे के बीचोबीच खड़ा हो कर
दर्ज़ करता है, अपना हस्तक्षेप !!
और प्रस्तावना में 'हम भारत के लोग...'
की जगह लिख देना चाहता है
हम 'भारत के भूखे लोग....'

पर ठीक उसी समय याद आता है
भूख से पहले उसके पास जाति है
धर्म है, क्षेत्र है, भाषा है, और गर्व है

जिस दिन वो भूख के अलावा सबकुछ भूल जाएगा
उसदिन बादशाह को छट्ठी का दूध याद आ जाएगा।

अनुराग अनंत

आदमी आदी हो गया है..!!

आदमी आदी हो गया है
आदमियों की नकल का

वो फ़ायदा उठता है
आदमियों जैसे हाँथ-पैर
पेट,पीठ और शकल का

आप किसी आदमी जैसे को
आदमी समझ लेते हैं
इस तरह एक भरम है
जो आदमियत की परिभाषा हो गया है

आदमी गोल-मटोल तर्क हो गया है
एक चुकी हुई भोथरी भाषा हो गया है

ये आदमी अकेले में आईने से डरता है
और जिस दिन सच्चाई से आईना देख लेता है
बस उसी दिन मरता है

आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है
जब सर तान कर चलने की जरूरत होती है
वो रपट कर गिरता है
आदमी मरते हुए जीता है
और जीते हुए मरता है
आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है।

अनुराग अनंत

और बड़ा सपना..!!

एक दिन मेरा मन किया, मैं कुछ बहुत अच्छा लिखूँ।

मैंने तुम्हारा नाम लिखा।

और फिर दुनिया की सारी कविताओं ने दाद दी
सारे कवि अचंभे से निहारते रहे मुझे
मेरे आस-पास मोर के पंख की तरह बिखर गए संसार के सारे महाकाव्य

इस तरह मैं, मैं नहीं रहा
मुझे एक झटके से पता चला
सपना जब कागज पर उतरता है
तो और बड़ा सपना हो जाता है

अनुराग अनंत

'मैं' से 'तुम' तक की सुरंग !!

सुरंगों के इस देश में
जहाँ हर शहर, कस्बे और मुहल्ले में
किसी न किसी सुरंग का किस्सा आम है

मैं भी एक सुरंग ढूंढ रहा हूँ
जो मुझसे हो कर तुम तक पहुंचती हो

कोई मुझमें प्रवेश करे तो तुममें निकले
कोई तुममे डूबे तो मुझमे उतराए

मैं आजकल बस दिन रात वही सुरंग ढूढ़ रहा हूँ
और लोग हैं कि कहते हैं
मैं कवि होता जा रहा हूँ
शायर सा दिखने लगा हूँ
मैं बदलता जा रहा हूँ

मुझे भी लगता है
गर नहीं ढूढ़ पाया ऐसी सुरंग
तो इस तरह बदल जाऊंगा
कि सुरंग हो जाऊंगा

'मैं' से 'तुम' तक की सुरंग !

अनुराग अनंत

संभावनाएं !!

संभावनाएं संभव है सारी संभावना खो दें
और भावनाएं अनाथ भवनों के अहाते में लावारिश पशुओं सी बेड़ दीं जाएं

आँसूओं में बहें आशाएं
और आशंकाओं पर जा कर टिक जाएं आस्थाएं

वो आएं तो शायद इस तरह आएं
कि बदल जाएं सब की सब परिभाषाएं
अपनी पीठ खुजलाने को रीरियाए व्याकरण
और किसी दरबारी कवि सी हो जाएं भाषाएं

जो तुम देखो तो हर आदमी में तुम्हें सधा हुआ आदमी दिखे
हर आदमी में बंधा हुआ आदमी दिखे

मन में पालती मारकर बैठ जाए पागलपन
और जो तुम उसको एक छंटाक परसो
तो ज़िद करके तुमसे मांगे
खाने को एक मन

रात के अंधेरे में गूंजता रहे
'भात-भात' का संगीत
और दूर कहीं कोई माँ
अपने बच्चे की लाश पर
लालसाओं का लेप लगा कर
सुरक्षित कर ले
भीतर बहुत भीतर किसी तहखाने में

संभावना ये भी है कि जब तुम्हें चीख़ कर रोना हो
अपने डर को खोना हो
तुम्हें मिल जाए कोई क़िताब
तुम उसकी प्रस्तावना पढ़ो
और घटित होने पर आमादा किसी घटना की तरह
घटित होने से पहले ही स्थगित हो जाओ
अनुराग अनंत