बुधवार, अप्रैल 17, 2019

"ईश्वर" गिर कर मर गया...!!

उस रात का सपना ऐसा था जिसने दिन की हक़ीक़त बदल दी। अब मैं माँ को याद करता था तो उसके पल्लू में बंधे सिक्के याद आते थे। उसकी देर रात लगाई गई खाने की थाली, उसके गाल में पिता के थप्पड़ के निशान और उसकी चिता याद आती थी। मेरी माँ टुकड़ों में बंट गई थी। पिता साबूत पत्थर की तरह थे जिसपे जब तब मैं सर दे मारता था। तुम जो कभी झरने की तरह लगती थी अब रेत लगने लगी थी। मैं शीशे में खुद को देखता था तो एक तड़पती हुई मछली दिखती थी या अंधेरे में सिसकती हुई बच्ची। सब कुछ बदल गया था। आदमी सड़क पर चलते चलते भाप की तरह उड़ जाते थे और मशीनें राजाओं की तरह आदेश देतीं थीं। सारी समस्या का हल था मेरे पास था। जिसे लोग नींद की गोलियां कहते थे और मैं जिंदगी का दूसरा नाम। मेरे ज़हन में हमेशा बर्फ़ गिरती रहती थी। और एक तेज़ रफ़्तार गाड़ी गुजरती और एक बच्चा सड़क पार करने की फ़िराक़ में दब कर मर जाता था। इस तरह जितनी बार मैं सुकून से बैठता उतनी बार एक बच्चे की मौत हो जाती थी। उस रात सपने में मैंने देखा कि गली की सबसे बुजुर्ग बुढ़िया ने सारी जिंदगी की कमाई से जो घर बनाया था जिसका नाम उसने "नज़र" रखा था। उसकी छत से उसका पागल बेटा "ईश्वर" गिर कर मर गया। लोगों ने कहा "बुढ़िया की नज़र से ईश्वर गिर कर मर गया। मेरे साथ जो हुआ था उसका क्या नाम है, उसे क्या कहा जायेगा। ये लोगों को तय करना था। किसी दिन समय निकाल कर वो लोग ये भी तय कर देंगे शायद।


अनुराग अनंत 

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