बुधवार, अप्रैल 17, 2019

नींद: नौ कविता, ग्यारह क़िस्त-6

रात वो पुड़िया है
जिसमें जंग लगे पुराने ब्लेड के टुकड़े लपेटे गए हैं
जहाँ कटी उंगली का दर्द कैद है
जहाँ घाव में डालने के लिए ज़रूरी नामक सहेजा गया है

नींद वो अभागी भिखारन है
जो दिन भर भीख मांग कर रात को भूखी सो जाती है
नींद वो बच्ची है जो हर बार मेले में खो जाती है

और मैं वो बात हूँ
जो पूरी होने से पहले काट दी जाती है
मैं वो आंख हूँ
जो काँच की किरचों से पाट दी जाती है

अनुराग अनंत

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