बुधवार, अप्रैल 17, 2019

नींद: नौ कविता ग्यारह क़िस्त-7

नींद की नौ कविता

1.
तुम ख़्वाब की शक़्ल में
मेरी नींद की जासूसी करती हो।
इसलिए रात भर जाग कर मैं अपनी नींद
आंखों के नीचे की स्याही, चेहरों की झुर्रियों और अपनी खीज़ में छुपा देता हूँ।

2.
जागता हुआ आदमी
ट्रेडमील पर भगता हुआ आदमी होता है

3.
जब रात नहीं कटती
तो घटनाएं घटती हैं।
घटने को तो ये भी घटना घट सकती थी
मेरी कलाई की नस कट सकती थी।

4.
अधूरी बात की तरह गुज़री पूरी रात
बह भी गयी, रह भी गयी।

5.
रात भर नींद की अदालत में मुक़दमा चलता है
मैं सारी रात कठघरे में खड़ा रहता हूँ।
"मैं सोना चाहता हूँ"
रोते हुए नींद से कहता हूँ।

6.
तुम्हारा ख़याल नुमाया होता है
और नींद ग़ायब हो जाती है
"तुम्हारा ख़याल" नींद का दुश्मन है
"नींद" तुम्हारे ख़याल की मारी।

7.
ढाई कदम की रात थी
और ढाई अक्षर का तेरा नाम
कल सारी रात तेरा नाम लेने में कट गई।

8.
मेरी नींद घायल है
रेंग कर मुझ तक आती है
और तब तक सुबह हो जाती है।

9.
कल रात फिर सारी रात याद करता रहा
कल रात फिर नींद का नाम याद नहीं आया।

अनुराग अनंत

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