बुधवार, अप्रैल 17, 2019

नींद: नौ कविता, ग्यारह क़िस्त-9

एक बेचैन पागल की टूटी चप्पल
एक अनाम कवि का मटमैला झोला
एक प्रेमी की अनकही बात
एक आवारा लड़की की अंगड़ाई
एक सुहागन की रख कर भूली हुई कोई चीज़
एक बूढ़े की कंठ से फूटती मौत की मनुहार
एक माँ की पनीली आंखें
और एक उजाड़ मंदिर की भग्न देवी प्रतिमा
मेरी रातों में काटें बिछाती फिरतीं हैं
मेरी नींदें इन्हीं से टकरा कर गिरतीं हैं

अनुराग अनंत 

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