सोमवार, नवंबर 07, 2011

मैं आवारा शायर ,

इंसान कहाँ समझती है दुनिया गरीबों को ..............





















मैं आवारा शायर ,फिरूँ मारा-मारा ,
इसे देखता ,उसे देखता ,
खुशियों को खाता,ग़मों को चखता ,
छूता समझता जहाँ का नज़ारा ,
मैं आवारा शायर फिरूँ मारा-मारा..........

वो झुनिया की इज्जत ,लोला की लाज ,
बसंती के रूप को देखे समाज ,
सौ के पत्ते पर उनको लेटे मैंने देखा , 
सभ्य को असभ्य बनते हुए देखा ,
मैं चिल्लाया पर सोता रहा संसार सारा ,
मैं आवारा शायर फिरूँ मारा-मारा..........

मालिक राजू को पीटे, धर बाँह घसीटे ,
पाँच साल का राजू, है बनिया का बियाजू ,
गाल आंसू के धब्बे ,फिर भी आँख उसकी चमके ,
वो कीताबों से दूर, है महेनत में चूर ,
हिन्दुस्तान के भविष्य को कूड़े से खाना बीनते देखा ,
जिन्दगी जीने के लिए  बचपन को मरते देखा ,
अब राजू क्या जाने बाल श्रम अधिनियम बेचारा ,
मैं आवारा शयर फिरून मारा-मारा ............



                                                         तुम्हारा --अनंत 

हिंदुस्तान में गरीबों की हालत जो है वो है ही पर उस पर जो सबसे  ज्यादा असहनीय और दारुण है वो है बच्चों और महिलाओं की हालत ,जब घर के मर्द नशे में धुत हो कर कहीं नाली में पड़े रहते है या फिर जब उनकी कमाई से घर के सभी लोगों की पेट की आग नहीं बुझती तब मजबूर हो कर महिलाओं को जिस्म फरोसी और बच्चों को मजदूरी करनी पड़ती है ...........

                           

कोई टिप्पणी नहीं: