बुधवार, अप्रैल 17, 2019

मुझमें और तुममें बस यही छोटा सा अंतर है !!

तुम चाँद के वक्र पर जान दे सकते हो
और चाँद का वक्र मेरी जान ले सकता है
क्या जान देना और जान लेना
एक जैसी बात ही है क्या ?
नहीं! क़तई नहीं
ठीक वैसे, जैसे
समंदर का पानी नमकीन होता है
और आंसू खारा

मेरा सब कुछ लिखना बर्बाद है
और तुम सोच भी लो यदि तो कविता हो जाए

दरअसल सारा खेल तुम्हारी आँखों में है
तुम कालीदास की तरह बादलों को देखते हो
और बादल मेघदूत हो जाते हैं
और मैं किसानों की तरह बादल को देखता हूँ
और बादल मुंह बिचकाते हैं।

तुम समय निकाल कर फ़िल्म देखने चले जाते हो
और मैं समय के निकल जाने पर पछताता हूँ।
चाँद तुम्हारे छत पर चढ़ कर ईद हो जाता है
और चाँद मेरी छत पर चढ़ता है और कूद कर जान दे देता है

मुझमें और तुममें बस यही छोटा सा अंतर है।

अनुराग अनंत

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