बुधवार, नवंबर 24, 2010

तुने हमे ठुकराया है

तुने हमे ठुकराया है ,
हम हैं प्रेम पंथ पर चलने वाले ,
विरह अग्नि में जलने वाले,
अश्रु -कणों को नयन दबा कर ,फिर से अधर मुस्काया है ,
तुने हमे ठुकराया है ,
हम सूरज है ढलने वाले ,
हम शिला - खण्ड है गलने वाले,
बिन प्रेम प्राण इस जग जीवन में, कहाँ कोई जी पाया है ,
तुने हमे ठुकराया है ,
ओ! मेरे ह्रदय में पलने वाले ,
ओ! यथार्थ में न मिलने वाले ,
स्वप्नों में तुझको पा कर ,ये मन कैसे बौराया है
तुने हमे ठुकराया है ,
''तुम्हारा --अनंत''

मुझे छुओ मत जल जाओगे

मुझे छुओ मत जल जाओगे ,
तपन है कितनी ,दर्द है कितना ,
जलता है यहाँ तिनका -तिनका,
तुम मेरे पास न आओ प्यारे ,शोक अग्नि में गल जाओगे ,
मुझे छुओ मत जल जाओगे ,
कोई मुझे जला कर चला गया है ,
मुझे बड़े प्रेम से छला गया है ,
सब ढल जाते हैं इस आसमान में ,तुम भी इक दिन ढल जाओगे ,
मुझे छुओ मत जल जाओगे ,
मत कहो कि मैं कहूँ कहानी,
आँखों से फिर झरेगा पानी ,
पत्थर पिघला गाथा सुन कर ,तुम भी व्यर्थ पिघल जाओगे ,
मुझे छुओ मत जल जाओगे ,
''तुम्हारा -अनंत ''

तुम कितनी जल्दी बदल गए

तुम कितनी जल्दी बदल गए ,
बरगद की छाया सा शीतल ,
कितना प्यारा था तेरा आँचल ,
जिस दीपशिखा से मिली रौशनी ,उस दीप में सारे स्वप्न जल गए ,
तुम कितनी जल्दी बदल गए ,
कभी यहाँ रुके ,कभी वहाँ चले,
कभी उगे -उगे, कभी ढले -ढले ,
ये अनाथ यादों के जुगनू ,भटक -भटक कर पल गए ,
तुम कितनी जल्दी बदल गए ,
हम थोडा भी बदल न पाए ,
चाल बदल कर चल न पाए ,
हम ताक रहे थे नभ के तारे ,तुम उन्हें पकड़ने उछल गए ,
तुम कितनी जल्दी बदल गए ,
''तुम्हारा --अनंत ''

बहता दरिया

अब तो आँखों में इक लहर सी रहा करती है ,
जरा चूके कि झट से बहा करती है ,
पत्थर कहा करती थी ,दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
गुमसुम हैं ,उदास हैं ,
खुद से दूर हैं ,हम तेरे पास हैं ,
मंजर हैं बेरुखा
खार है लम्हों के बदन पर
कितनी खुशमुना हो जाती वो घड़ी
जब तू साथ रहा करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
इक पल भी कहाँ गुजरा है ,
कम्बख्त मुझे रुलाए बिना ,
तेरी यादों के मासूम सोते नहीं ,
इक ग़ज़ल सुनाए बिना ,
सुना देता हूँ जब ग़ज़ल ,
याद तेरी छाती से लिपट कर सोया करती है ,
पत्थर कहा करती थी, दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया दरिया कहा करती है ,
लुका -छिपी कभी ,कभी दौड़ा-भागी का खेल ,
तेरी याद और मैं खेलते हैं,
दिल के आँगन में ,
देखता हूँ मैं तुझे दूर खड़ा हो कर ,झलकती है तू मुझे ,
मेरी यादों के बचपन में,
सुबह से शाम तलक ,मेरी रूह बस तुझे छुआ करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे,
अब तो बहता हुआ, दरिया कहा करती है ,
प्यार कहते हैं किसे ,अभी तक न समझा हूँ मैं,
कुछ आस -पास है मेरे ,बस उसी में उलझा हूँ मै,
क्या यादों का ये बवंडर ,उलझनों -कशक ,
किसी क वास्ते ,धडकनों की धक् -धक् ,
प्यार है ...............
या खुदा !
ये प्यार भी क्या अजीब चीज हुआ करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
''तुम्हारा --अनंत ''

मंगलवार, नवंबर 23, 2010

मुझे तुमसे प्यार है, हाँ मुझे तुमसे प्यार है

बहुत दिनों से मैं चुप था ,खामोश था ,
मेरे भीतर का अरमान जमीदोश था,
आज हुआ क्या ये ,
ये कैसे हुआ उजाला ,
न जाने मैंने तुमसे कैसे कह डाला ,
मुझे तुमसे प्यार है, हाँ मुझे तुमसे प्यार है ,
यूँ देखता था तुम्हे,
बस तुम्हे देखता था ,
देख कर है हर बार ये सोचता था ,
कब आयेगा वो दिन जब कहूँगा दिल की बात,
लिख रहा हूँ जो ,मै ये आज की रात ,
मुझे तुमसे प्यार है,हाँ मुझे तुमसे प्यार है ,
तितलियों की पर की तरह,
नाजुक से दिल के ख्वाब थे ,
मै इक सियाह जहान था ,
तुम मेरे अफताब थे ,
तेरी इश्क की रौशनी में ,
मैंने दिल की दिवार पर लिख डाला ,
मुझे तुमसे प्यार है ,हाँ मुझे तुमसे प्यार है ,
''तुम्हारा --अनंत ''

शनिवार, नवंबर 20, 2010

बंधन

तोड़े नहीं टूटेगा ,दिल का है जो ये बंधन ,
इस बंधन से बंधा हुआ है ,तेरा मेरा जीवन ,
एक डोर  है हाँथ मेरे ,
एक डोर है हाँथ  तेरे ,
मैं तुझको खींच रहा  हूँ ,
तू रह -रह मुझको खींचे ,
कोई रोक नहीं सकता है ,
अब तेरा -मेरा मिलन ,
तोड़े नहीं टूटेगा ,दिल का है जो ये बंधन ,
इस बंधन से बंधा हुआ है ,तेरा मेरा जीवन ,
टूटेगी सांस मगर ,
रिस्ता नहीं टूटेगा ,
छूटेगा जग सारा ,
पर तेरा हाँथ न छूटेगा ,
प्रीत की डोर से है ,
बंधा, तेरा मेरा मन ,
तोड़े नहीं टूटेगा ,दिल का है जो ये बंधन ,
इस बंधन से बंधा हुआ है तेरा मेरा जीवन ,
हम अलग हो कर भी ,
अलग नहीं है रे ,
रूह है साथ हमारी ,
है साथ हमारी साँसे ,
मैं प्रेम बिम्ब हूँ प्रिये ,
और तुम हो प्रेम दर्पण ,
तोड़े नहीं टूटेगा ,दिल का है जो ये बंधन ,
इस बंधन से बंधा हुआ है तेरा मेरा जीवन ,
बरसेगी ख़ुशी जहाँ ,
मेघ प्रेम का बरसेगा ,
तृप्ति होगी वहां ,
न मन तेरा -मेरा तरसेगा,
उस स्वप्न महल की तुम छत हो जाना ,
और मैं हो जाऊँगा आँगन ,
तोड़े नहीं टूटेगा दिल का है जो ये बंधन ,
इस बंधन से बंधा हुआ है तेरा मेरा जीवन
''तुम्हारा ---अनंत ''

गुरुवार, नवंबर 18, 2010

वो तो बस एक गुलाब थी !!

वो तो बस एक गुलाब थी
ओस की बूंदों सी कोमल थी
तितली जैसी वो चंचल थी
मेरे अँधेरे स्वप्न नगर की ,वो एक मात्र आफताब थी
वो तो बस एक गुलाब थी

वो नदिओं की काटन थी
बर्फीली पहडीओं की मुस्कान थी
हम जिस प्रेम नगर के फर्श थे यारों ,वो उसकी मेहराब थी 
वो तो बस एक गुलाब थी

मैं अब तुमसे क्या बतलाऊँ
खोल के जिगर कैसे दिखलाऊँ
बस इतना सुन लो मेरे मुहं से ,वो तो बस लाजवाब थी 
वो तो बस एक गुलाब थी 

''तुम्हारा --अनंत ''

इस दिल में गम ही गम है यारों

इस दिल में गम ही गम है यारों ,
हँसते है हरदम, हम मुस्काते है,
झरनों सा बहते है इठलाते है ,
है अधरों पर मुस्कान हमारे , आँखे बिल्कुल नम है यारों ,
इस दिल में गम ही गम है यारों ,
हम उस पागल को खूब समझाते है ,
आंसू पोछ कर धीरज धरवाते है ,
पर कंहा मानता है वो पागल,मन तो आखिर मन है यारों ,
इस दिल में गम ही गम है यारों,
बहुत छला है हमे अपनों ने ,
हमे जला दिया है सपनो ने ,
मृत्यु मांगी जीवन पाया ,ये तो घोर सितम है यारों,
इस दिल में गम ही गम यारों ,
खंड -खंड कर तोड़ दिया है,
मेरी चाहत का गला मरोड़ दिया है ,
सच कहता हूँ यकीं मान लो ,ये वक़्त बहुत बेरहम है यारों ,
इस दिल में गम ही गम है यारों ,
''तुम्हारा --अनंत ''

मै तेरी याद में पागल हो जाऊँगा

मै तेरी याद में पागल हो जाऊँगा ,
दिल के जख्म पके हुये है ,
कदम रूह के थके हुये है ,
आंसू बरसाएगा जो ,मैं वो बादल हो जाऊँगा ,
मैं तेरी याद में पागल हो जाऊँगा ,
यादों की ये गरम हवा है,
जिसमे मेरा जिस्म जला है ,
जल कर रख बनूँगा ,या फिर तेरी आँखों का काजल हो जाऊँगा,
मैं तेरी याद में पागल हो जाऊँगा ,
अब तक तेरा इंतजार मैं करता हूँ ,
तेरी यादों में जीता हूँ ,मरता हूँ ,
तू जब गुजरेगी मेरी गली से ,मैं तेरे पांव का पायल हो जाऊँगा ,
मैं तेरी याद मे पागल हो जाऊँगा ,
मैं एक आजाद पछी था यारा ।
जिसे तुने निज नयन से मारा ,
मुझे पता था कि तेरी गली में जा कर, मैं घायल हो जाऊँगा ,
मैं तेरी याद में पागल हो जाऊँगा ,


''तुम्हारा --अनंत ''

मंगलवार, नवंबर 16, 2010

एहसास

मैं तो बस एक एहसास हूँ,
तितली कि पंखों की रंगत ,
चिड़ियों की कोमल सी हरकत ,
नदी ,पहाड़ी, जंगल ,झाड़ी जमीन और आकाश हूँ ,
मैं तो बस एक एहसास हूँ ,
मंदिर, मस्जिद,मुझे न देखो ,
देख सको तो खुद में देखो ,
क्यों दर-दर भटक रहे हो प्यारे ,मैं कब से तुम्हारे ही पास हूँ ,
मैं तो बस एक एहसास हूं,
लोग मुझे सागर कहते है ,
अल्लहा,ईसू नानक ,नटनागर कहते है ,
पर सच तो ये है मैं ,गरीबों की भूख और प्यास हूँ ,
मैं तो बस रक एहसास हूँ ,
''तुम्हारा --अनंत ''

सोमवार, नवंबर 15, 2010

मुझको बस याद तेरी ही आएगी

जब तक सांस चलेगी तन में 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी
रोते रहेंगे नयन मेरे 
मेरी कलम बस प्रणय गीत ही गाएगी 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी
जब-जब बहेगी शीत पवन
बजेगी पायल झन-झन 
केश उड़ेंगे लहर-लहर 
झूम के नाचेगा मेरा मन 
यादों के पर्दों के पीछे 
तू खड़ी- खड़ी मुस्काएगी 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी 
मेरी कलम बस प्रणय गीत ही गाएगी

है अधरों पर तेरे मुस्कान 
जलते हैं मेरे अरमान 
जान रहे हैं एक दूजे को हम
फिर भी बनते है अनजान 
मैं तो मृत हो जांउगा
जब तू मुझे छोड़ कर जायेगी 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी
मेरी कलम बस प्रणय गीत ही गाएगी 

तेरे बिना भी क्या जीवन है 
तू ही तो मेरा जीवन है 
साँसों के कण-कण में तू है
तू ही मेरी धड़कन है 
मैं तुझको तो भूल न पाऊंगा 
क्या तू मुझको भूल जायेगी 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी 
मेरी कलम बस प्रणय गीत ही गाएगी 

जो जीते है वो मरने से कब डरते है 
चलने वाले गिरने से कब डरते है
जो महकाते है सारा उपवन 
वो पुष्प झरने से कब डरते है
मैं ईश्वर कि जगह तुझे पुकारूँगा 
जब मृत्यु मुझको लेने आएगी 
मुझको बस याद तेरी ही आएगी 
मेरी कलम बस प्रणय गीत ही गाएगी 

''तुम्हारा --अनंत ''

उसकी याद आई है

आज फिर से उसकी याद आयी है ,
शाम के आँचल मैं दर्द बिछा कर,
चारों तरफ अश्कों की बूँद सजा कर,
छेडी फिर से वही तान ,वही ग़ज़ल सुनाई है ,
आज फिर से उसकी याद आई है,

न जाने क्यों दुखता है मन ,
आँखों से बहता है सावन,
लोग भीगाते है अपनी काया ,मैंने अपनी रूह भिगाई है,
आज फिर से उसकी याद आई है ,

मै बोल रहा था वो शांत खडी थी,
मैं बहा पड़ा था वो अड़ी खडी थी ,
उसने चुप रह कर, मेरे प्रेम की हंसी उड़ाई है,
आज फिर से उसकी याद आई है ,

मैंने सुना था अनमोल प्यार है ,
प्यार ही जीवन का आधार है,
पर उसने मेरे प्रेम की, कैसी बोली लगाई है
आज फिर से उसकी याद आई है ,

मेरे दर्द को कविता कहने वालों ,
मेरी अश्रु -धार में बहने वालों ,
सुन कर मेरी व्यथा -कथा ,तुम्हारी भी आँखे भर आँई है ,
आज फिर से उसकी याद आई है ,

''तुम्हारा --अनंत ''

मत रोको मुझे कह लेने दो

मत रोको मुझे कह लेने दो ,
कुछ उफान सा है भीतर ,
मन मेरा है बिलकुल जर्जर ,
बन गया हूँ अश्रु -नदी मै यारों,मुझको अब तुम बह लेने दो ,
मत रोको मुझे कह लेने दो,
तुम मुझपे दया क्यों करते हो,
मेरे खातिर तुम आँहें क्यों भरते हो ,
ये प्रेम का मीठा दर्द है प्यारे ,मुझको हंस कर सह लेने दो ,
मत रोको मुझे कह लेने दो ,
कल नवीन जब सूर्य उगेगा ,
ये अनंत तब नहीं रहेगा ,
मैं बुझा हुआ दीपक हूं यारों ,मुझको अपने दिल में रह लेने दो ,
मत रोको मुझे कह लेने दो ,
''तुम्हारा --अनंत ''

मन करता है खुल कर रो लूं



मन करता है खुल कर रो लूं ,
कब तक दर्द दबे दिल में,
कब तक नाव रहे साहिल में ,
बूँद बने- बने जी ऊबा है, मन करता है सागर हो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं
ये यादों का बोझ निराला है ,
बड़ी मुस्किल से इसे संभाला है ,
जब तक जीवन बाकी है ,तब तक इसको हंस कर ढो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं ,
सब नहा रहे मुझमे आ कर,
मै सूखा पड़ा हूँ सागर हो कर ,
कोई मुझपे बरसे ऐसा कि, अपना तन- मन आज भिगो लूं ,
मन करता है खुल कर रो लूं ,

                               '' तुम्हारा --अनंत ''

शुक्रवार, नवंबर 12, 2010

तुम हमे सहारा मत देना

तुम हमें सहारा मत देना ,

हम रज ढेर बने उड़े पवन में ,

बन कर तिनका हम जले अगन में ,

जब हम गुजरे तेरे नगर से, तू हमे गुजरा मत देना,

तुम हमे सहारा मत देना,

हम राह पड़े है पाहन से ,

तुम हमे देखते घर के आँगन से ,

प्यासा कंठ हमारा है पर ,तुम हमे झूठे प्रेम कि धरा मत देना ,

तुम हमें सहारा मत देना ,

जीवित है हम बेमन से ,

हम ऊब गए है जीवन से ,

देख लिया है हमने तेरा सत्य रूप ,अब दरश दुबारा मत देना ,

तुम हमे सहारा मत देना,

''तुम्हारा--अनंत''

चुभती है मुस्कान तुम्हारी

चुभती है मुस्कान तुम्हारी ,
सत्य प्रेम निर्मल जल से ,
तट मन का गुंजित कल कल से ,
कट गए प्रेम के पंख प्रिये ,निरस्त हुई उड़ान हमारी ,
चुभती है मुस्कान तुम्हारी ,
हम भटके प्रेम पंथ पर पागल से ,
हम रह -रह बरसे बादल से ,
प्रेम नगर में लूटे हुये ,राही सी है पहचान हमारी ,
चुभती है मुस्कान तुम्हारी,
नयन झरे अश्रु ढल मल से ,
कोई इन्हें पोंछ दे आँचल से,
कोई धीरे से प्रेमाघात लगा दे ,हंस कर निकले जान हमारी ,
चुभती है मुस्कान तुम्हारी ,
''तुम्हारा--अनंत ''

जैसा था तुमसे कह डाला

जैसा था तुमसे कह डाला ,
जीवन का अंधकार दिखया,
गुण दिखलाये ,विकार दिखाया ,
विधि कर कर न कष्ट शेष कोई ,जितना था सब कष्ट सह डाला,
जैसा था तुमसे कह डाला,
मन कहे तो मुझसे मिलना साथी ,
वरना निरीह मलूँगा छाती ,
अब और युद्ध न होगा मुझसे ,लो देखो हथियार ये डाला,
जैसा था तुमसे कह डाला ,
टूटी सितार का नाद बना मैं ,
उदास आँखों में ठहरा विषाद बना मैं ,
कुछ तो है तुझमे जो तुने ,मुझमे फिर से नवीन लय डाला ,
जैसा था तुमसे कह डाला ,
'' तुम्हारा --अनंत''

गुरुवार, नवंबर 11, 2010

बहुत दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,

बहुत दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,
तेरी स्मृतियों ने खूब सताया ,
मुझको रह -रह कर तडपाया,
जो दिल कि बात दबी थी अब तक ,मैं उसको कहने बैठा हूँ ,
बहुत दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,
रुका- रुका सा जग सारा है ,
रुकी हवा है ,रुकी नदी कि धारा है ,
पर मुझको देखो मैं पागल, सहरा मैं बहने बैठा हूँ ,
बहुत दिनों के बाद लिखने बिठा हूँ ,
तू किसी और की हो कर चली गयी ,
मेरी साँची प्रीत यूं ही छली गयी ,
पर इन्तजार के मंडप में ,मैं जोड़ी -जामा पहने बैठा हूँ ,
बहुत दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,
''तुम्हारा --अनंत ''

न कहो मुझे गाने के लिए

न कहो मुझे गाने के लिए ,
वो शाम अभी भी याद मुझे है ,
जिस शाम हम तुझे समझे है ,
थोडा वक़्त लगेगा साथी, वो रूप तेरा भुलाने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
बहुत दूर मैं चला गया हूँ ,
मै अपनों से छला गया हूँ ,
अब कोई वजह बाकि ही नहीं है ,वापस मुड कर आने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
जी भर गया मेरा आब जमीन से ,
ऊब चूका हूँ अब दुनिया और दीन से,
उडूँगा अब जब आश्मान में ,ये छोटा पड़ जायेगा उड़ने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
''तुम्हारा --अनंत ''

मै बिलकुल ही टूट गया था

मै बिलकुल ही टूट गया था
शब्द विफल थे,भाव निशब्द थे ,
स्वप्न मेरे सब स्तब्ध थे ,
मै किससे कहता बात ह्रदय की ,जब साथी मेरा रूठ गया था ,
मैं बिलकुल ही टूट गया था ,
कुछ पा कर मैंने खोया था ,
मैं उस दिन सारी रात रोया था ,
वक़्त के एक धक्के से उसका हाँथ, मेरे हांथों से छूट गया था ,
मैं बिलकुल ही टूट गया था
मैं प्रेम गली में ठगा खड़ा था,
मेरा टूटा दिल यंहा- वहाँ पड़ा था ,
कोई आपना था जो मुझको, बहला फुसला कर लूट गया था,
मैं बिलकुल ही टूट गया था ,
''तुम्हारा --अनंत''

मंगलवार, अक्तूबर 26, 2010

मै आप से उतना ही प्यार करता हूँ

रेत पर पड़ती है बूँद जब,
तो समां जाती है न जाने कहाँ
प्यासी ही रह जाती है रेत पहेले के ही तरह,
मेरी आँखों की रेत पर तुम्हारे दरश की जल बूँद भी,
ठीक वैसे ही समां जाती है न जाने कहाँ,
और प्यासी रह जाती है ,मेरी आँख रेत की तरह
एक बार बरसो इस तरह,
बह उठे मेरी आँखे ,
आ जाये एक बाढ़ और तोड़ दे पलकों का बांध
उस बहती हुई धार में बह जाये सारा दर्द ,
और फिर मैं ठहर कर ,
तुम्हरे हांथो में हाथ रख कर
कहूं प्यार से ,
मुझे तुमसे प्यार है ,
उतना की जितना करती है काया आत्मा से ,
जीवन स्वांस से ,
फूल खुसबू से ,
रात अंधरे से,
दिवस आकाश से
ठीक उतना ही प्यार करता हूँ
मैं आप से ,
 
तुम्हारा-- अनंत

शनिवार, अक्तूबर 23, 2010

मै कैसे तुम्हे बिसरूंगा


मै कैसे तुम्हे बिसरूंगा 
तुम रक्त धार मे हो मिली हुई 
साँसों के धागे से हो सिली हुई 
मै हर धडकन के साथ प्रिये, 
रह रह कर तुम्हे पुकारूँगा 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा 

मेरे स्वप्नों का दर्पण टूट गया 
तेरा हाथ मेरे हाथों से छूट गया 
मैं इस टूटे स्वप्न दर्पण में,
तेरा आनन ही निहारूंगा 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा 

तू मुझे बिसारे तेरी इच्छा है ,
क्या पता मुझे क्या गन्दा है क्या अच्छा है ,
पर मैंने तो ठान लिया,
मैं खुद को तुझ पर वारुंगा , 
मैं कैसे तुम्हे बिसरूंगा ,

''तुम्हारा- अनंत''