बुधवार, अप्रैल 17, 2019

एक ग़लती फिर से हो गयी है !!

एक ग़लती फिर से हो गयी है !!

मेरी एक कविता खो गयी है
एक गठरी जिसमें
एक टुकड़ा दुख
एक टुकड़ा दर्द
एक टुकड़ा याद
एक टुकड़ा बात
एक टुकड़ा दिन
एक टुकड़ा रात
बांध दिए थे मैंने

कई दिन अलसाए अलसाए बिताए
रोते हुए, समय के ख़िलाफ़ लड़ते हुए
समय नष्ट करते हुए
अपने भीतर की बिखरन बुहारते हुए
कीमती, बेशकीमती और ग़ैरकीमती समान जलाते हुए
जब बीता समय का एक टुकड़ा
तब कहीं एक अदद कविता निकली
भीतर की बंजर ज़मीन से

वही कविता खो गयी है
एक ग़लती फिर से हो गयी है।

अनुराग अनंत

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