बुधवार, अप्रैल 17, 2019

मुस्कुराइए कि हम इस समय में हैं !!

मुस्कुराइए कि हम इस समय में हैं।

अपराधों की सूची में
सबसे जघन्य अपराध था
"चाहत" से किसी कविता को शुरू करना
ये बात मैं जानता था
फिर भी मैंने 'चाहत' से कविता शुरू की
कि मैं चाहता था कि
मुझसे पूछा जाए
जब गर्मियों की किसी शाम मरी मेरी माँ
और पिता घर पर नहीं थे
तो मैं कहाँ था

मुझसे पूछा जाए कि प्यार जब तिल तिल कर मर रहा था
और उसने हल्के से रोते हुए कहा
कि चलो भाग चलते हैं
उस वक़्त मैं कहाँ था ?

मुझसे पूछा जाए जब लिखना था कुछ बेहद जरूरी
और मैं नहीं लिख सका
उस वक़्त मैं कहाँ था

मुझसे पूछा जाए
जब उतर जाना चाहिए था दिल के बहुत गहरे
और मैं नहीं उतरा
उस समय मैं कहाँ था

जब मेरी कलाइयों में हथकड़ी और मुंह पर नारे होने थे
उस वक़्त मैं कहाँ था

मैं कहाँ था ?
तब जब मुझे बढ़ कर शहीद हो जाना चाहिए था
या जब हवन हो जाना था मुझे
मैं कहाँ था ?
तब जब हर इंतज़ार का मुकम्मल जवाब देना था मुझे

मैं चाहता था
मुझसे हज़ार सवाल पूछे जाएं
पर दुःख और दर्द इसी बात का है
कि मुझसे महज़ एक सवाल पूछा गया
"चौरासी में कहां थे ?"

इस समय जब बहुत कुछ हासिल हो चुका है
ऐसा अख़बार, टीवी चैनल
और देश का राजा बोलता है
तो मैं अपनी हथेली देखता हूँ
जहां मुहावरे अश्लील हँसी हँस रहें हैं
हमारे इस स्वर्णिम समय का हासिल
महज़ चंद मुहावरे हैं
"मार कर लोया कर देंगे"
"ऐसा गायब करेंगे कि नज़ीब हो जाओगे"
"रोहित वेमुला बना दिये जाओगे"

मैं अपनी हथेली देखता हूँ
और फिर अपने समय और अपनी भाषा के विस्तार को देखता हूँ
सिमटी हुई भाषा और सिकुड़ा हुआ आदमी कितना विराट लगता है

इतना विराट की ढंग से न सवाल पूछता है
और ना पूछने देना चाहता है

मुस्कुराइए कि हम इस समय में हैं।

अनुराग अनंत

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