सोमवार, जून 12, 2017

स्वाहा, आहा और वाह !!

जिस समय हत्याओं की साजिशें
महायज्ञ की तरह की जा रहीं हैं
और सबको स्वाहा में एक आहा खोजने को कहा जा रहा है
तुम उसी समय अपनी कलम में धार करो
इसलिए नहीं क्योंकि इसकी जरूरत है
बल्कि इसलिए क्योंकि ये तुम्हारी मजबूरी है

अगर तुम्हारी कलम में धार
और आवाज़ में आधार नहीं होगा
तो तुम भी गुब्बारे की तरह हवा में उड़ोगे
उसी रास्ते पर बढ़ोगे
जहाँ आखरी में एक खाईं है
और उसकी बाट पर बैठा हुआ एक नाई है
वो पहले उस्तुरे से  तुम्हारी हज़ामत बनाएगा
और फिर उस तरह से तुम्हारी गर्दन उड़ाएगा
कि उसके स्वाहा कहने पर
तुम्हारे मुंह से आहा का स्वर निकलता हुआ सुनाई देगा
ठीक उसी समय तुम्हे हर कोई वाह कहता दिखाई देगा

इसीलिए तुम अपनी कलम की धार तेज करो
और स्वाहा, आहा और वाह के सामने
चीखती हुई आह लिखो
ताकि सनद रहे
कि तुमने स्वाहा, आहा और वाह के समय में भी
आह में आह ही लिखा है !!
आह को आह ही कहा है !!

तुम्हारा-अनंत  
   

सूरत बदली जाती है...!!

सीने की आग, बर्फ सी चुप्पी
धीरे धीरे पिघलाती है
सड़कों पर तनती है मुट्ठी
जगह जगह लहराती है
गाती है, गाती है, जवानी
गीत वही दोहराती है
मेरा रंग दे बसंती चोला वाला
गीत वही दोहराती है
सूरत बदली जाती है
हाँ सूरत बदली जाती है-2

जो तख़्त पे बैठा, बना बादशाह
मूछों पे हाँथ फिराता है
छप्पन इंची वाला सीना
ठोंक ठोंक इतराता है
रोता है, गाता है, देखो
कितने करतब दिखलाता है
बम, गोली, लाठी, डंडे
सब हथकंडे आजमाता है
उस तानशाह के हस्ती
हम मस्तों की मस्ती से थर्राती है
सूरत बदली जाती है
हाँ सूरत बदली जाती है-2

दबी दबी आवाज़ों में भी
कुछ इंक़लाब सा घुलता है
ठन्डे पड़े जिगर में फिर से
लावा कोई उबलता है
जज़्बा सरफ़रोशी का
रह रह कर आज मचलता है
चाहे जितना तेज़ तपे
दमन का सूरज एक दिन ढलता है
जब जब हुई लड़ाई हम ही जीते हैं
दुनिया की तारीख़ यही बताती है
सूरत बदली जाती है
हाँ सूरत बदली जाती है-2

सूखे ख़ून के धब्बे कहते
नहीं सहेंगे जुल्म तेरा
सौ में पूरे नब्बे कहते
नहीं सहेंगे जुल्म तेरा
पॉवों में पड़ी बेड़ियाँ कहती
नहीं सहेंगे जुल्म तेरा
बेटे और बेटियां कहती
नहीं सहेंगे जुल्म तेरा
उठती आवाज़ों के सामने
जुल्मी की गर्दन झुकती जाती है
सूरत बदली जाती है
हाँ सूरत बदली जाती है-2

तुम्हारा-अनंत

रविवार, जून 11, 2017

मोरा पिया नहीं है पास..!!

पतंग याद की
रात की डोरी
उलझन का आकाश
मोरा पिया नहीं है पास-2

आग का दरिया
डूब के जाना
पानी में बहती प्यास
मोरा पिया नहीं है पास-2

शाम सी ढलती
रह रह जलती
जैसे दीपक में जले कपास
मोरा पिया नहीं है पास-2

खारे खारे
लम्हे सारे
मिट गयी सारी मिठास
कि मोरा पिया नहीं है पास-2

दरश जो पाऊं
मैं सुस्ताऊँ
सांस में आये सांस
मोरा पिया नहीं है पास
कि मोरा पिया नहीं है पास-2

तुम्हारा-अनंत

गुरुवार, जून 01, 2017

तल्खियां तेरी आँखों की...!!

तल्खियां तेरी आँखों की बहुत चुभती है
आग ज़िगर में जलती है, आह उठती है

फिर सोचता हूँ, मुझ पर इतना तो करम है
मेरे वास्ते तल्खियां हैं, तो ये भी कहाँ कम हैं

ख़्वाब तेरे सजाए हैं, हमने दिल पत्थर करके
अब टूट भी जाए ये पत्थर तो कहाँ गम है

तेरी आरजू करके काम दिल से ले लिया हमने
अब इस नाकाम दिल का और कोई काम नहीं

तेरी ज़ुस्तज़ू में भटकती धड़कनों को सुकूं है अब
जो दो घडी आराम से बैठ जाएँ तो आराम नहीं

तर्के-ए-मुहब्बत तूने कर लिया पर हमसे न हुआ
हम अब भी तेरे एहसासों के साए में जिया करते हैं

अजब नशा सा है तेरी उल्फत के आंसुओं में सनम
हम मय में घोल के अब खुद के अश्क पिया करते हैं

सब रास्ते जो बंद हो गए हैं तो अब एक ही रास्ता है
कोई नया रास्ता बनाएंगे एक नए रास्ते के लिए

जो सब वास्ते मिट गए तो अब एक ही वास्ता है
कोई नया वास्ता बनाएंगे एक नए वास्ते के लिए

मैं लाख कह दूँ तुझसे पर वो बात कह न पाऊंगा
जो बात मेरी जान में जान की तरह अटकी है

तू वो उलझी हुई गली है जो मंज़िल तक जाती है
तू वही गली है कि जिसमे जिंदगी मेरी भटकी है

मेरी कहानी जो कहानी कहती है तो यही कहती है
कुछ तल्खियां हैं जो मुझमे साँसों की तरह बहती है

तल्खियां तेरी आँखों की बहुत चुभती है
आग ज़िगर में जलती है, आह उठती है

तुम्हारा-अनंत