रविवार, दिसंबर 23, 2012

"वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डंट जावें.....

सागर की अतल गहराई से
आती है स्कूल की प्रार्थना की आवाज़
छुट्टी की घंटी की टन-टन-टन....
किसी कटी पतंग के पीछे भागते बच्चों का शोर
कच्चे घरौंदों की खुशबु
और बहुत कुछ
जिनका नाम लेना साइनाइड चाट लेने जैसा है

मैं सागर हूँ
और अतल गहराई, वो यादें
जिनमे याद करने लायक कुछ भी नहीं
सिवाय उस पंक्ति के....
"वह शक्ति हमें दो दयानिधे
कर्तव्य मार्ग पर डंट जावें.....

सागर और गहराई के बीच
खड़ी है माँ
और उसकी आँखें
इन सब के ऊपर छाई है मेरी बेकारी
और वो पंक्ति
"वह शक्ति हमें दो दयानिधे
कर्तव्य मार्ग पर डंट जावें.....

माँ के हाथों की बनाई रोटी
एक कुत्ता छीन ले गया है
वही कुत्ता जिसने मुझे
"वह शक्ति हमें दो दयानिधे
कर्तव्य मार्ग पर डंट जावें.....
गाते सुना और काट लिया था

घर अब घर नहीं लगता
वो फंसी का तख्ता लगता है
जहाँ भगत सिंह नाम के किसी आदमी को फांसी हुई थी
या फिर हरे खेत का वो कोना लगता है
जहाँ पाश को गोली मारी गयी थी
मैं खूब चाहता हूँ कि
वो मेरे बचपन के खेल का मैंदान लगे
जहाँ मैंने सीखा था कि कैसे सीखना चाहिए
वो कोचिंग की बोरिंग क्लास लगे
जहाँ मैंने अनुभव किया था कि लड़कियों की आँखों में जादू होता है
और न्यूटन और पाईथागोरस पागल थे
पर बहुत चाहने के बाद भी घर मुझे वो जंगल लगता है
जहाँ एक सागर
अतल गहराई में समा जाना चाहता है
खो जाना चाहता है
किसी रंग में जिसका नाम अभी खोजा जाना बाकी है

मेरी माँ का बेटा
कहीं खो गया है
दीवारों के नारों ने
अखबारी कतरनों ने
और जंगल से आने वाली
नदियों, पहाड़ों और आदमियों की आवाज़ों ने
न जाने उसे कहाँ ले जा कर छोड़ा है
मेरी माँ उसकी आवाज़ नहीं सुन पाती
सुन पाती है तो बस वो पक्तियां

"वह शक्ति हमें दो दयानिधे
कर्तव्य मार्ग पर डंट जावें..... की सतत अनुगूंज

वो मेरी ओर देखती है
अब मैं क्या बोलूं
वो जाने और उसका बेटा जाने
मैं तो सागर हूँ
जो अपनी अतल गहराई में खोया हुआ है
साइनाइड चाट के सोया हुआ है

तुम्हारा- अनंत

कोई टिप्पणी नहीं: