रविवार, अप्रैल 10, 2011

मैं कविता तब ही लिखता हूँ ,

महा प्राण निराला 
मैं कविता तब ही लिखता हूँ ,
जब कोई भाव दिल में दफ़न हो जाता है ,
जब कोई भीतर -भीतर अश्क बहाता है ,
जब महेनत बेच मजूरा घर पर,
 भूंखे पेट सो जाता है ,
जब बच्चे जैसा कोई सपना ,
आँखों की गोदी से खो जाता है ,
जब नन्हें हाथ औज़ार उठाते हैं,
 जब बच्चे बूढ़े हो जाते हैं,
 तब मैं कविता से आग लगाता  हूँ ,
मैं कविता तब ही लिखता हूँ ,
जब मुफलिस माँ तन बेच के घर को आती है ,
बच्चों की भूख मिटाती है ,
जब पति घर में दारू पी कर आता है ,
पत्नी पर हाथ उठता है ,
जब दमितों का रक्त उबलता है ,
जब क्रोध ह्रदय को दलता है,
जब कोई  बेबस छाती मलता है ,
जब उगने वाला सूरज ,
उगने से पहले ढल जाता है,
तब मैं संघर्ष का दीपक बनकर जलता हूँ ,
मैं कविता तब ही लिखता हूँ ,
जब कोई रिक्सा वाला ,
चौराहे पर गश खा कर गिर जाता है ,
जब उसके निर्बल देह को ,
कोई हाथ तक नहीं लगाता  है ,
जब किसी की बेटी को,
 कोई पैसे की खातिर आग लगाता  है ,
जब कोई शिक्षित बेरोजगार , 
डीग्री के बोझ तले मर जाता है  ,
तब  अपनी कविता के बम,
 मैं दिल्ली की ओर चलाता  हूँ ,
मैं कविता तब ही लिखता हूँ ,
 तुम्हारा --अनंत   
''महाकवि निराला के दमित प्रेम को समर्पित ,,
''निराला की याद  में ''

2 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा, अंतर का आक्रोश जब शब्द बन कर कागज पर उतरता है तो ऐसे रच जाता है.

Babu ji parname ने कहा…

aap ka word ma hindustan ka chera nazar aata ha jo ki sayd india ka logo ko nazar nahi aata