शनिवार, अप्रैल 23, 2011

प्यार में अक्सर भूल हो जाती है

एक नज़्म कह नहीं पाया 
सो चबा गया था 
पर हज़म नहीं हुई 
वो गहरी गुलाबी नज़्म 
चेहरा पूरा लाल पड़ा हुआ है 
कि जैसे खून पोता हो किसी ने 
या फिर होली खेली हो खून की
खैर, उस रात  
रात ओढ़े 
रात की तरह 
रात भर 
मैं खड़ा रहा .........
कि शायद इस रात मेरा सूरज मुझे दिखे 
और मैं कह दूं 
ऐ सूरज !!
ये रात तुझे प्यार करती है 

पर रात को क्या पता था
कि सूरज रंग बदलता है 

वो उसे अपनी तरह एकरंगा  समझती थी 

प्यार में अक्सर भूल हो जाती है 

तुम्हारा -- अनंत 


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