एक खारा-खारा ,
ख़ाकी-ख़ाकी ,
ख्याल सताता रहता है ,
जब भी तनहा,
कभी अकेले ,
तन्हाई में,
खुद से बातें करता हूँ ,
खुद से बातें करता हूँ ,
ये आ कर बैठ जाता है सामने ,
प्यासे कुत्ते की तरह ,
हाँक देता हूँ जब इसे ,
ये भौंरा बन जाता है ,
और भूम-घूम कर बस यही बडबडाता है,
''जैसा तुम कर रहे हो
अपमे माँ-बाप के साथ
तुम्हारे बच्चे भी
वैसा ही करेंगे तुम्हारे साथ ,,
तुम्हारा --अनंत
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