एक नज़्म कह नहीं पाया
सो चबा गया था
पर हज़म नहीं हुई
वो गहरी गुलाबी नज़्म
चेहरा पूरा लाल पड़ा हुआ है
कि जैसे खून पोता हो किसी ने
या फिर होली खेली हो खून की
खैर, उस रात
रात ओढ़े
रात की तरह
रात भर
मैं खड़ा रहा .........
कि शायद इस रात मेरा सूरज मुझे दिखे
और मैं कह दूं
ऐ सूरज !!
ये रात तुझे प्यार करती है
पर रात को क्या पता था
कि सूरज रंग बदलता है
वो उसे अपनी तरह एकरंगा समझती थी
प्यार में अक्सर भूल हो जाती है
तुम्हारा -- अनंत
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