वो तो बस एक गुलाब थी
ओस की बूंदों सी कोमल थी
तितली जैसी वो चंचल थी
मेरे अँधेरे स्वप्न नगर की ,वो एक मात्र आफताब थी
वो तो बस एक गुलाब थी
वो नदिओं की काटन थी
बर्फीली पहडीओं की मुस्कान थी
हम जिस प्रेम नगर के फर्श थे यारों ,वो उसकी मेहराब थी
वो तो बस एक गुलाब थी
मैं अब तुमसे क्या बतलाऊँ
खोल के जिगर कैसे दिखलाऊँ
बस इतना सुन लो मेरे मुहं से ,वो तो बस लाजवाब थी
वो तो बस एक गुलाब थी
''तुम्हारा --अनंत ''
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