बुधवार, नवंबर 24, 2010

बहता दरिया

अब तो आँखों में इक लहर सी रहा करती है ,
जरा चूके कि झट से बहा करती है ,
पत्थर कहा करती थी ,दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
गुमसुम हैं ,उदास हैं ,
खुद से दूर हैं ,हम तेरे पास हैं ,
मंजर हैं बेरुखा
खार है लम्हों के बदन पर
कितनी खुशमुना हो जाती वो घड़ी
जब तू साथ रहा करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
इक पल भी कहाँ गुजरा है ,
कम्बख्त मुझे रुलाए बिना ,
तेरी यादों के मासूम सोते नहीं ,
इक ग़ज़ल सुनाए बिना ,
सुना देता हूँ जब ग़ज़ल ,
याद तेरी छाती से लिपट कर सोया करती है ,
पत्थर कहा करती थी, दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया दरिया कहा करती है ,
लुका -छिपी कभी ,कभी दौड़ा-भागी का खेल ,
तेरी याद और मैं खेलते हैं,
दिल के आँगन में ,
देखता हूँ मैं तुझे दूर खड़ा हो कर ,झलकती है तू मुझे ,
मेरी यादों के बचपन में,
सुबह से शाम तलक ,मेरी रूह बस तुझे छुआ करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे,
अब तो बहता हुआ, दरिया कहा करती है ,
प्यार कहते हैं किसे ,अभी तक न समझा हूँ मैं,
कुछ आस -पास है मेरे ,बस उसी में उलझा हूँ मै,
क्या यादों का ये बवंडर ,उलझनों -कशक ,
किसी क वास्ते ,धडकनों की धक् -धक् ,
प्यार है ...............
या खुदा !
ये प्यार भी क्या अजीब चीज हुआ करती है ,
पत्थर कहा करती थी दुनिया पहले मुझे ,
अब तो बहता हुआ दरिया कहा करती है ,
''तुम्हारा --अनंत ''

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