तुम्हारी आँखों ने मुझे मारा
और मैंने मृत्यु को जिया जीवन की तरह
सांस के अंतिम हिस्से में
जब काँच करकता था
तो मैं तुम्हारा नाम लेता था
और तुम थोडा सा भगवान हो जाती थी
और मैं थोडा सा कुत्ता!
प्यार
इंसान, कुत्ते और भगवान को
इंसान, कुत्ता और भगवान बनाता है
उदासी के आठवें प्रहर में
मैंने लिखा ये डायरी में
और लिखते ही उड़ गए शब्द
आकाश में नहीं, पाताल में
मैं तनहा पड़ा था
और तुम बह रही थी, आँखों से
कविता की तलाश में
भटकता कोई आदिम फ़कीर, मुझे देखता
तो चूमता हज़ार बार
और मैं सोचता रहता, तुम्हारे बारे में
जैसे कोई भूखा सोचता है
रोटी के बारे में
तुम खुद को खोदना कभी
तुम्हारी अंतिम तह में
मैं दबा हूँ, साबूत
तुम्हे मालूम है या नहीं
मैं नहीं जानता
पर मैं मरा नहीं हूँ
जिन्दा हूँ वहाँ
इतना पता है मुझे
वहीँ से आती है मुझे साँसें
और वहीँ धड़कता है मेरा दिल
बाकी सब धोखा है
तुम्हारी 'न' में सोई हुई मौत
और मेरी 'हाँ' में जागती जिंदगी
सब धोखा है !
तुम्हारा-अनंत
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