तुम सिगरेट की तरह
बहुत बाद में आई मेरी जिंदगी में
और मौत की तरह
सबसे बाद में जाओगी शायद
तुम्हारे आने के बाद
और जाने से पहले का समय
धुएँ के शहर में,
रास्ता भूला हुआ समय है
जिसकी पीठ पर कांटे
और पांवों में पर्वत उग आयें हैं
इस समय
मैं न एक कदम चल पाता हूँ
न एक नींद सो पाता हूँ
मैं बस वहीँ खड़ा हूँ
जहाँ से, तुम्हारी बालकनी दिखती है
पर तुम नहीं दीखती
मैं तुम्हे याद करना चाहता हूँ
तो अपनी पैदाइश का शहर भूल जाता हूँ
और जब तुम्हे चूमना चाहता हूँ
तो कोई मेरी नसें काट देता है
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
तो खुद से नफ़रत कर बैठता हूँ
और जब तुमसे नफ़रत करना चाहता हूँ
तो मर जाने का मन करता है
पंखों पर लटकती, नदियों में डूबी
और जहर से नीली पड़ीं, प्रेमियों की लाशों ने
मुझसे कहा था-
कि उन्हें कवितायेँ लिखनी नहीं आतीं थी
और कवितायेँ लिखने वालों ने कहा था-
कवितायेँ लिखना, मौत को जीने की तरह ही होता है
मंदिरों में पत्थरों को पूजतीं लड़कियां, पत्थर
होतीं हैं
तुम भी एक पत्थर थी
सिगरेट की तरह ख़तरनाक पत्थर
तुम्हे जिसने भी बनाया है
उस पर मुक़दमा होना चाहिए
क्योंकि उसने नहीं लिखा तुम्हारे माथे पर
“तुम्हे पीना जानलेवा हो सकता है”
जैसे लिखा होता है सिगरेट पर
पीता तो मैं तुम्हे फिर भी
पर एक तस्सल्ली होती
कि तुमने बताया था, पहले ही
कि तुम जान ले लोगी
अब जब मैं तुम्हे पिए बैठा हूँ
धुएँ से घिरे समय में, भटकते हुए
अपनी कटीं नसों से बातें कर रहा हूँ
और बस यही सोचता हूँ
कि न जाने कितने और मरेंगे
तुम्हारे नूर के ज़हर से
न जाने कितने और मरेंगे
बिना ये जाने कि उनका मरना बिलकुल तय है
तुम्हारा-अनंत
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