जैसे अता करते हैं रोज पाँच वक्त नमाज़, नियम से
वैसे ही वो मुझे धोखा देती है
रोज पाँच वक्त, नियम से
मैं हर धोखे के साथ हंसता हूँ
वो हर धोखे के साथ रोती है
मैं हर धोखे के साथ सूफ़ी होता जाता हूँ
वो हर धोखे के साथ काफिर होती जाती है
आएगी जब कयामत मारे जायेंगे
काफिर और सूफ़ी दोनों ही
पर सूफियों की बनेगी मज़ार
जिन पर लोग मुहब्बत की दुआएें मागेंगे
और काफिर को पत्थरों से मार कर
लोग भूल जायेंगे कि उन्होने किसी का कत्ल भी किया है
मैं अपनी और उसकी मौत जब देखता हूँ
तो बस यही सवाल गूंजता है
कि वो मुझे सूफ़ी
और खुद को काफिर क्यों बना रही है ?
तुम्हारा अनंत
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