तुम साथ होती तो
बारिश की बूँदों को हम पढ़ सकते थे
बात कर सकते थे
खामोश रास्तों और गुमसुम पेडों से
तुम साथ होती तो
जाडे की हथेलियों पर मैं कविताएं लिख सकता था
और तुम हवाओं की देह मे घुली
ओस की बूँद पर बाँचती उन्हें
तुम साथ होती तो
दिन मे अड़तालीस बार हँसते हम
और हमारा जीवन छानबे गुना बढ़ जाता
तुम साथ होती तो
हम मृत्यु से करते मजाक
और मृत्यु, शरमा कर कहती
तुम लोग बड़े शरारती हो
अब ऐसा मजाक उड़ाओगे
तो मैं फिर कभी नहीं आउंगी
तुम साथ होती तो
सुबह की अलमस्त अंगड़ाई से
निकलता प्रेम का अखण्डकाव्य
और हम उसे जीवन के सितार पर
गाते रहते जीवन भर
तुम साथ होती तो
मैं कुछ न सोचता
कुछ न लिखता
कुछ न बोलता
बस जीता रहता मैं तुम्हे
और तुम जीती रहती मुझे
बरसते रहेते अनवरत बादल खिड़की से बाहर
और हम खिड़की पर खड़े
चिड़ियों की तरह बातें करते
तुम साथ होती तो
ये सारी कल्पनायें सच होतीं
ये जो जिंदगी जैसी, जिंदगी है
ये असल में जिंदगी होती
काश तुम साथ होती !
तुम्हारा- अनंत
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