तुम: तुम मुझे पाना चाहते हो ?
मैं: क्या तुम जाना चाहते हो ?
तुम: अलविदा !!
मैं: जब हम मिले ही नहीं तो विदा कैसी ?
तुम ख़ुद को वस्तु और देह समझती थी
मेरे लिए तो तुम एक स्त्री थी
चेतना और मन की नदी
जिसके किनारे मैं गा सकता था
जिसमें मैं अपने दुख प्रवाहित कर सकता था
दुनिया से हार कर या युद्ध जीत कर
या भीतर के राक्षस को मार कर या ख़ुद को तुम पर वार कर
मैं राम की तरह तुममें समा सकता था
पर तुम सरयू नहीं बनी
तुम वस्तु बनी
और वस्तुएं तो बाज़ार में भी मिल सकती हैं
पर नहीं मिलती कोई नदी किसी बाज़ार में
नहीं बिकती चेतना किसी हाट में
नहीं है किसी शो रूम में किसी स्त्री का मन
एक बात सुनों जाना सबसे ख़तरनाक क्रिया है
कवि केदार ने कहा है
पर जान का जाना, प्रेम का जाना, किसी स्त्री का जीवन से जाना
वस्तुएं आने जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता
ना कवि केदार को
और ना मुझे
अनुराग अनंत
मैं: क्या तुम जाना चाहते हो ?
तुम: अलविदा !!
मैं: जब हम मिले ही नहीं तो विदा कैसी ?
तुम ख़ुद को वस्तु और देह समझती थी
मेरे लिए तो तुम एक स्त्री थी
चेतना और मन की नदी
जिसके किनारे मैं गा सकता था
जिसमें मैं अपने दुख प्रवाहित कर सकता था
दुनिया से हार कर या युद्ध जीत कर
या भीतर के राक्षस को मार कर या ख़ुद को तुम पर वार कर
मैं राम की तरह तुममें समा सकता था
पर तुम सरयू नहीं बनी
तुम वस्तु बनी
और वस्तुएं तो बाज़ार में भी मिल सकती हैं
पर नहीं मिलती कोई नदी किसी बाज़ार में
नहीं बिकती चेतना किसी हाट में
नहीं है किसी शो रूम में किसी स्त्री का मन
एक बात सुनों जाना सबसे ख़तरनाक क्रिया है
कवि केदार ने कहा है
पर जान का जाना, प्रेम का जाना, किसी स्त्री का जीवन से जाना
वस्तुएं आने जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता
ना कवि केदार को
और ना मुझे
अनुराग अनंत
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