शनिवार, जून 01, 2019

ऐसे मरता है रिश्ता !!

ज्यादा नहीं बस इतना जानों कि
सबसे पहले मरती हैं बातें
फिर पत्थर होती जाती हैं रातें
फिर ठंडा पड़ता है दिल
फिर मरता है लगाव तिलतिल
फिर रुकने, आने, जाने का अर्थ खो जाता है
फिर बिसुरने लगते हैं हम कि क्या नाता है
फिर एक दिन अचानक हम देखते हैं
वो करोड़ों में एक हो गया
और पता ही नहीं चला कि एक रिश्ता जिसके लिए हम मुस्कुरा के मर सकते थे
बेमौत बेवक्त ना जाने कैसे मर गया

याद का क्या है वो आती है, नहीं आती है,
फिर कभी अचानक किसी मोड़ पर मिल जाती है
कोई किसी को भूल नहीं पाता
कोई किसी को याद भी नहीं रखता

ऐसे ही मारते हैं हम अपने हांथों रिश्तों को
और ताउम्र ढोते हैं यादों की किस्तों को
सस्ती तुकबंदियों से कविता नहीं बनती
जिंदगी बिना सस्ती तुकबंदियों के नहीं चलती

जिंदगी को कविता करने की ज़िद्द घातक होती है
ये बात हर उस कवि को मालूम है जिसने जिंदगी को कविता किया है
जो शिव बटालवी की तरह स्लो डेथ मरा है

ये को कुछ लिखा है
इसमें कविता तलाशना पत्थर के शहर में फूल खोजना है
ये वो बात है जिसे जानता मै भी हूं, तुम भी जानते हो और वह भी जनता है
जिसने एक नन्हें से मासूम रिश्ते की गर्दन पर अभी अभी कटारी रख दी है।

अनुराग अनंत

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