कलाकार बड़ा ही अजीब होता है, उसे दर्द होता भी है और नहीं भी होता, उसे ख़ुशी होती भी है और नहीं भी होती, खुद के गम को गम नहीं समझ जाता उससे और दूसरों के गम से मूंह भी नहीं मोड़ा जाता, जिन लोगों को भी भगवान पर विश्वास है वो अक्सर ये कहते हुए पाए जाते है ''कलाकार को भगवान ने जाने कौन सी मिट्टी से बनाया है'' उन लोगों में एक मैं भी हूँ क्योंकि मैं भी कहीं न कहीं इश्वर जैसी किसी चीज पर विस्वास करता हूँ .......पर उसका रूप, और परिभाषा वैसी नहीं है जैसा ठग विद्वानों ने बताया है. खैर आज एक पन्ना मिला, पुरानी किताबों के बीच से बहुत पहले लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ शायद उस वक़्त जब मन ये निश्चय कर रहा था कि अब कलाकार ही बनना है, चाहे जो कीमत चुकानी पड़े,,,,,,,,,,,, तो मिलिए उन पंक्तियों से........
( 1 )
काँपती हवाओं की शाखाओं पर,
हमने आशियाना बना रखा है,
जोड़ कर तिनका-तिनका,
एक शहर सजा रखा है,
पर गर वक़त की सुनामी में,
बह जाए सब कुछ,तो भी गम नहीं,
हम कलाकार हैं हमने दिल फौलाद बना रखा है,
( 2 )
अँधेरे में भी जो चमक जाते हैं,
गर्दिशों में हँसते हैं, मुस्कुराते हैं,
लाख गम हो सीने में उनके,
पर कहाँ वो उस गम को दिखाते है,
बनाया है फौलादी मिट्टी से खुदा ने उनको,
वो कलाकार हैं बमुश्किल आंसू बहते है,
( 3 )
दिल की दिवार पर पड़ी एक दरार हूँ,
जिंदगी के साथ हुआ एक टूटा करार हूँ,
ज़माने ने बनाई जो कालकोठरी जिम्मेदारियों की,
मैं उन कालकोठरियों से, मुजरिम फरार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
भीगा है दिल आंसूओं से,
मैं उनकी चुभती बातों का शिकार हूँ,
डसती है जहरीली निगाहें अपनों की,
मैं उनकी नज़रों में, एक इंसान बेकार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
भूखे बच्चों के चेहरों पर,प्रश्न चिन्ह तैरते हैं.
बीबी के शाब्दिक नाखून मेरे ज़ख़्म उकेरते हैं,
माँ बिमारी में तड़प कर एडियाँ रगडती है,
बाप की बूढी आँखें अब मुझसे झगडती हैं,
हक़दार हूँ मैं तुम्हारी तालियों का,
पर उनका गुनाहगार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
मैं छोटे भाई बहनों को प्यार न दे सका,
उनकी बिखरती जिंदगी को संवार न सका,
लुट गया बचपन उनका बचपन में ही,
और मैं फस हुआ था गीत-ओ-गुंजन में ही,
कभी-कभी सोचता हूँ तो लगता है,
मैं एक मजबूत घर की कमज़ोर दीवार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
तुम्हारा---अनंत
( 1 )
काँपती हवाओं की शाखाओं पर,
हमने आशियाना बना रखा है,
जोड़ कर तिनका-तिनका,
एक शहर सजा रखा है,
पर गर वक़त की सुनामी में,
बह जाए सब कुछ,तो भी गम नहीं,
हम कलाकार हैं हमने दिल फौलाद बना रखा है,
( 2 )
अँधेरे में भी जो चमक जाते हैं,
गर्दिशों में हँसते हैं, मुस्कुराते हैं,
लाख गम हो सीने में उनके,
पर कहाँ वो उस गम को दिखाते है,
बनाया है फौलादी मिट्टी से खुदा ने उनको,
वो कलाकार हैं बमुश्किल आंसू बहते है,
( 3 )
दिल की दिवार पर पड़ी एक दरार हूँ,
जिंदगी के साथ हुआ एक टूटा करार हूँ,
ज़माने ने बनाई जो कालकोठरी जिम्मेदारियों की,
मैं उन कालकोठरियों से, मुजरिम फरार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
भीगा है दिल आंसूओं से,
मैं उनकी चुभती बातों का शिकार हूँ,
डसती है जहरीली निगाहें अपनों की,
मैं उनकी नज़रों में, एक इंसान बेकार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
भूखे बच्चों के चेहरों पर,प्रश्न चिन्ह तैरते हैं.
बीबी के शाब्दिक नाखून मेरे ज़ख़्म उकेरते हैं,
माँ बिमारी में तड़प कर एडियाँ रगडती है,
बाप की बूढी आँखें अब मुझसे झगडती हैं,
हक़दार हूँ मैं तुम्हारी तालियों का,
पर उनका गुनाहगार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
मैं छोटे भाई बहनों को प्यार न दे सका,
उनकी बिखरती जिंदगी को संवार न सका,
लुट गया बचपन उनका बचपन में ही,
और मैं फस हुआ था गीत-ओ-गुंजन में ही,
कभी-कभी सोचता हूँ तो लगता है,
मैं एक मजबूत घर की कमज़ोर दीवार हूँ,
मैं कलाकार हूँ, हां मैं कलाकार हूँ,
तुम्हारा---अनंत
1 टिप्पणी:
विचारणीय रचना ...
एक टिप्पणी भेजें