इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं
जब क्षण-क्षण में छाई पराजय है
तब कण कण में जीत लिखूंगा मैं
जब मित्रों में शत्रु उग आए हों
तब शत्रु से प्रीत लिखूंगा मैं
जब अपनों में परायापन जागा हो
तब परायों को मीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं............!!
मैं घोर तिमिर की गोदी में
दीपक लिख कर आऊंगा
मैं संघर्षों की वेदी पर
बलिदानों का रूपक लिख कर आऊंगा
मैं विकट विवशता के पल में
धरणी का धैर्य लिखूंगा अब
मैं कायरता के कलि कपाट पर
शोणित का शौर्य लिखूंगा अब
राहों के रोड़ों से कह दो
राही गिरना भूल गया है
अब उस सपने को भी चलना होगा
जोकि चलना भूल गया था
मृत्यु के मौसम में झरते, अश्रु के होठों पर
मलमल की मुस्कान लिखूंगा मैं
मन की मरुभूमि में मरते अरमानों के
माथों पर जान लिखूंगा मैं
उलझन में उलझे विस्तृत वितान के मगन मौन पर
जीवन की लय में बहता हँसता संगीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!
वज्रों की वर्षा में भी अब
मैं पुष्पों सा खड़ा रहूँगा
दारुण दुःख के दरिया में
चिर चट्टानों सा अड़ा रहूँगा
है विधि वारिध में जितनी लहरे
मैं सब के सब से टकराऊँगा
हिय में शूल धसें हो फिर भी
मैं मुस्काऊँगा, गाऊंगा, लहराऊंगा
जीवन राग में रंगी हुई
रक्तिम रीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!
तुम्हारा-अनंत
आशा के गीत लिखूंगा मैं
जब क्षण-क्षण में छाई पराजय है
तब कण कण में जीत लिखूंगा मैं
जब मित्रों में शत्रु उग आए हों
तब शत्रु से प्रीत लिखूंगा मैं
जब अपनों में परायापन जागा हो
तब परायों को मीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं............!!
मैं घोर तिमिर की गोदी में
दीपक लिख कर आऊंगा
मैं संघर्षों की वेदी पर
बलिदानों का रूपक लिख कर आऊंगा
मैं विकट विवशता के पल में
धरणी का धैर्य लिखूंगा अब
मैं कायरता के कलि कपाट पर
शोणित का शौर्य लिखूंगा अब
राहों के रोड़ों से कह दो
राही गिरना भूल गया है
अब उस सपने को भी चलना होगा
जोकि चलना भूल गया था
मृत्यु के मौसम में झरते, अश्रु के होठों पर
मलमल की मुस्कान लिखूंगा मैं
मन की मरुभूमि में मरते अरमानों के
माथों पर जान लिखूंगा मैं
उलझन में उलझे विस्तृत वितान के मगन मौन पर
जीवन की लय में बहता हँसता संगीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!
वज्रों की वर्षा में भी अब
मैं पुष्पों सा खड़ा रहूँगा
दारुण दुःख के दरिया में
चिर चट्टानों सा अड़ा रहूँगा
है विधि वारिध में जितनी लहरे
मैं सब के सब से टकराऊँगा
हिय में शूल धसें हो फिर भी
मैं मुस्काऊँगा, गाऊंगा, लहराऊंगा
जीवन राग में रंगी हुई
रक्तिम रीत लिखूंगा मैं
इस पतझड़ में, घोर निराशा में
आशा के गीत लिखूंगा मैं...........!!
तुम्हारा-अनंत
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