गुरुवार, जुलाई 13, 2017

आदिकवि

वो आदिकवि
अभिवक्ति के मामले में सबसे असफल व्यक्ति रहा होगा
जो अपने भीतर अटकी बात को
लाखों बार, हज़ारों तरीके से कहने के बाद भी नहीं कह सका
रचनाओं पे रचनाएँ, रचता रहा
पर वो नहीं रच सका, जो उसके भीतर
फकीरों की तरह भटकता था
अधमरे आदमी की तरह कराहता था
पागलों की तरह चीखता था
और स्त्रियों की तरह रोता था
वो कभी कभी
बच्चों की तरह मुस्काता भी था
पर ऐसा कम ही होता था

आदिकवि नहीं रच सका
वो जो रचना चाहता था
नहीं कह सका वो जो कहना चाहता था
वो हर युग में जन्म लेता रहा
और अपने असमर्थता को पूरे सामर्थ से जीता रहा
अपने भीतर अटकी हुई बात को
हज़ार तरीके से कहता रहा
और कोई पुराना मकान जैसे आधी रात को बरसात में ढहता है
ठीक वैसे ढहता रहा

दुनिया वालों !
तुम उसकी बिखरन, टूटन उठाते रहे
कविता की तरह गाते रहे
कवि को  ब्रह्म बताते रहे
बिना ये जाने कि कवि सबसे मजबूर और असहाय व्यक्ति होता है
बिलकुल दंगों में बीच सड़क पर खड़े अनाथ बच्चे की तरह

वो जो नहीं लिख सका है कवि
वही लिखा जाना है
आज नहीं तो कल
तब तक जारी रहेगी असमर्थता के उस पार निकल जाने की जिद्द

तुम्हारा-अनंत

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