आदमी आदी हो गया है
आदमियों की नकल का
वो फ़ायदा उठता है
आदमियों जैसे हाँथ-पैर
पेट,पीठ और शकल का
आप किसी आदमी जैसे को
आदमी समझ लेते हैं
इस तरह एक भरम है
जो आदमियत की परिभाषा हो गया है
आदमी गोल-मटोल तर्क हो गया है
एक चुकी हुई भोथरी भाषा हो गया है
ये आदमी अकेले में आईने से डरता है
और जिस दिन सच्चाई से आईना देख लेता है
बस उसी दिन मरता है
आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है
जब सर तान कर चलने की जरूरत होती है
वो रपट कर गिरता है
आदमी मरते हुए जीता है
और जीते हुए मरता है
आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है।
अनुराग अनंत
आदमियों की नकल का
वो फ़ायदा उठता है
आदमियों जैसे हाँथ-पैर
पेट,पीठ और शकल का
आप किसी आदमी जैसे को
आदमी समझ लेते हैं
इस तरह एक भरम है
जो आदमियत की परिभाषा हो गया है
आदमी गोल-मटोल तर्क हो गया है
एक चुकी हुई भोथरी भाषा हो गया है
ये आदमी अकेले में आईने से डरता है
और जिस दिन सच्चाई से आईना देख लेता है
बस उसी दिन मरता है
आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है
जब सर तान कर चलने की जरूरत होती है
वो रपट कर गिरता है
आदमी मरते हुए जीता है
और जीते हुए मरता है
आदमी, आदमी जैसे काम बहुत कम करता है।
अनुराग अनंत
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