पेट जब पीठ पर टिक जाता है
तो कोई तर्क नहीं टिकता है
चाँद, चाँद नहीं रहता
चाँद रोटी हो जाता है।
आदमी जितना निरीह होता जाता है
उतना ख़तरनाक़ और खूंखार हो जाता है
भूखा आदमी सवाल हो जाता है,
बवाल हो जाता है
दीवार हो जाता है
वो चौराहे के बीचोबीच खड़ा हो कर
दर्ज़ करता है, अपना हस्तक्षेप !!
और प्रस्तावना में 'हम भारत के लोग...'
की जगह लिख देना चाहता है
हम 'भारत के भूखे लोग....'
पर ठीक उसी समय याद आता है
भूख से पहले उसके पास जाति है
धर्म है, क्षेत्र है, भाषा है, और गर्व है
जिस दिन वो भूख के अलावा सबकुछ भूल जाएगा
उसदिन बादशाह को छट्ठी का दूध याद आ जाएगा।
अनुराग अनंत
तो कोई तर्क नहीं टिकता है
चाँद, चाँद नहीं रहता
चाँद रोटी हो जाता है।
आदमी जितना निरीह होता जाता है
उतना ख़तरनाक़ और खूंखार हो जाता है
भूखा आदमी सवाल हो जाता है,
बवाल हो जाता है
दीवार हो जाता है
वो चौराहे के बीचोबीच खड़ा हो कर
दर्ज़ करता है, अपना हस्तक्षेप !!
और प्रस्तावना में 'हम भारत के लोग...'
की जगह लिख देना चाहता है
हम 'भारत के भूखे लोग....'
पर ठीक उसी समय याद आता है
भूख से पहले उसके पास जाति है
धर्म है, क्षेत्र है, भाषा है, और गर्व है
जिस दिन वो भूख के अलावा सबकुछ भूल जाएगा
उसदिन बादशाह को छट्ठी का दूध याद आ जाएगा।
अनुराग अनंत
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