बिना होठों से लगाए नहीं सुलगती है सिगरेट
बिना सीने से लगाए नहीं महकता है दुःख
बिना खुद को मिटाए, कवि नहीं लिखता है कविता
बिना खोये नहीं मिलता है खुद का पता
इसलिए मेरे होठों पर सिगरेट
सीने में दुःख
और दिमाग में खोया हुआ पता है
यही मेरी कविता है !!
तुम्हारा-अनंत
बिना सीने से लगाए नहीं महकता है दुःख
बिना खुद को मिटाए, कवि नहीं लिखता है कविता
बिना खोये नहीं मिलता है खुद का पता
इसलिए मेरे होठों पर सिगरेट
सीने में दुःख
और दिमाग में खोया हुआ पता है
यही मेरी कविता है !!
तुम्हारा-अनंत
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