हुस्ना तेरे साथ बिताया हर लम्हा
रह रह कर कविता बनकर रिसता है
भीतर है कोई जो तेरी याद में रोता है
बाहर है कोई जो हर एक बात पर हंसता है
तेरा चेहरा वो खंज़र है हुस्ना
जिसका क्या कहना
वो हर धड़कन के साथ
थोड़ा और ज़िगर में धंसता है
हुस्ना तेरे साथ बिताया हर लम्हा
रह रह कर कविता बनकर रिसता है...
रह रह कर कविता बनकर रिसता है
भीतर है कोई जो तेरी याद में रोता है
बाहर है कोई जो हर एक बात पर हंसता है
तेरा चेहरा वो खंज़र है हुस्ना
जिसका क्या कहना
वो हर धड़कन के साथ
थोड़ा और ज़िगर में धंसता है
हुस्ना तेरे साथ बिताया हर लम्हा
रह रह कर कविता बनकर रिसता है...
अनुराग अनंत
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