अंगडाई के आँगन में
जब तुमने नींद के कपड़े उतारे थे
उसी वक्त सूरज ने चुराई थी
तुमसे कुछ रौशनी
और तुमने मुस्कुरा कर कहा था
सुबह हो गयी!
तुम्हारी पायल ने कोयल को बोलना सिखाया था
और होठों की लाली ने गुलाब को खिलना
तुम्हारी चाल से चलना सीखा था नदी ने
तुम्हारी आँखों से देखा था आसमान ने धरती को
पेड़ों पर तुम्हारी हंसी का नशा फल बन कर लदा था
और तुम इन सब से बेखबर
कक्षा 9 की किताब में
"न्यूटन का तीसरा नियम'' पढ़ रही थी
प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है
दरवाज़ा खुला था उसी समय
और हुई थी तुम पर एक क्रिया
जिसमे तुम्हारे नींद के कपड़े फाड़े गए
तुम्हारी रौशनी को अँधेरा पहनाया गया
और मुस्कान पर एक लिजलिजा ला चुम्बन चिपका दिया गया
तुम्हारे भीतर बसी प्रकृति महज़ शरीर भर हो कर रह गयी थी
जिसे छील कर फेंक दिया गया था, एक कोने में
खून से लथपथ एक सच पड़ा था, अधमरा सा
शायद वो तुम थी!
खून से लथपथ एक सच पड़ा था, अधमरा सा
शायद वो तुम थी!
तुम उस क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं कर सकी
और धुआँ हो गयी थी
जबकि मैं तुम्हे आग लिखना चाहता था
अखबारों के तीसरे पन्ने में
छोटे से कोने में
चंद पंक्तियों में छपा था तुम्हारा उपन्यास
जिसे पढ़ा था तुम्हारे लाचार भाई और बाप ने
सरकारी अस्पताल में मुर्दाघर के बहार
और भरी थी किसी को सुनाई न देने वाली एक मुर्दा आह!
न्यूटन का नियम झूठा है
तुमने आखरी बार यही सोचा होगा
जब हथेलियों की रेखाओं पर झूली होगी तुम
या फिर इस विश्वास के साथ
आँखों के पानी में डूब मरी होगी तुम
कि एक दिन न्यूटन का नियम सच होगा
और प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होगी
तुम्हारा-अनंत
9 टिप्पणियां:
सुन्दर।।
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आखिर किसने कराया कुतुबमीनार का निर्माण?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
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कितना वीभत्स सच - लेकिन जड़ तत्वों में प्रतिक्रिया नहीं होती !
I like this
एक अनकहा सच ...बहुत मार्मिक कृति .
बहुत कमाल की रचना ... प्रभावी ...
mai sochta hun ki nyutan ke niyam se kuch ulta hoga
achchi kavita hai
बेहद मार्मिक ...। जिन्दगी के ये ही भ्रम जाने कहाँ पहुँचा देते हैं ।
प्रभावशाली प्रस्तुति
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