एक प्यास का जंगल है
जो पानी के रेगिस्तान पर उग आया है
फिदाइन मन गुजर रहा है
ठहरे हुए समय की तरह
एक रास्ता है
जो माँ के दुलार से बम की आवाज़ तक फैला हुआ है
एक और रास्ता है
जो खुद शुरू हो कर खुद पर खतम हो जाता है
मैं फलीस्तीन के किसी बच्चे की तरह
सपनों की अलमारी में
खिलौने और गुब्बारे रख कर आता हूँ
पर न जाने वो कैसे
बन्दूक, बारूद और धुआँ हो जाते हैं
मुझे अफ़सोस होता है
जब मुझे मालूम पड़ता है
कि चेतना भिखारी की जूठन
वैश्या की नींद
मुर्दे के शरीर से उतरा हुआ कपड़ा हो चुकी है
और अब लोगों को उसके नाम से उलटी आती है
सब डरा हुआ चेहरा लिए हँस रहे है
उड़ते हुए जहाज़ को देख कर
भाप हुए जा रहे है
और मैं खून की नदी में
अपने बाप की लाश पर तैर रहा हूँ
माँ की चीखों के साज़ पर
भाई बहनों के आंसूं के गीत गा रहा हूँ
मुझे साफ़ दिखाई दे रही है
लाशों के पहाड़ के उस पार
मेरी वो ज़मीन
जहाँ मैं बोऊंगा
अपने बाप के सपने
आपनी माँ की चीखें
भाई बहनों के आंसूओं के बीज
और काटूँगा आज़ादी की फसल
तब सारे प्यास के पेड़ गिरा दिए जायेंगे
पानी के रेगिस्तानों को जला दिया जायेगा
और बमों की आवाज़ के मुंह पर
एक ढीठ बच्चे की हंसी लिख दी जायेगी
मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ
जब कैदी परिंदों के पंख तलवार हो जायेंगे
और परवाज़ क़यामत
मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ
जब बच्चों के सपनों की अलमारी में
बन्दूक, बारूद और धुएं की जगह
खिलौने और गुबारे होंगे
जब उनकी नींद में
तेज़ाब नहीं बरसेगा
मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ
जब आजादी लिखने-पढ़ने की चीज़ नहीं
बल्कि जीने और महसूस करने की चीज़ होगी
तुम्हारा-अनंत
2 टिप्पणियां:
उड़ते हुए जहाज़ को देख कर
भाप हुए जा रहे है ( उम्दा है..)
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