बुधवार, मार्च 20, 2013

एक नंगे आदमी की डायरी...

कागज पर कुछ लिख कर मिटा देना
नाजायज़ संतानें पैदा करके मार देने जैसा होता है
और लिखे हुए को काट देना
अपने बच्चों का गला घोंट देने जैसा कुछ

मैं ये बात  जानता हूँ
और इसे मैंने डायरी के आखरी पन्ने पर लिख दिया है
डायरी के बाकि पन्नों पर भी
मैंने यही लिखा है
कि मैं हत्यारा हूँ
और तुम भी
और वो भी जिसे हम तुम जानते है
या नहीं भी जानते
हर कोई एक हत्यारा है

हर कोई एक चलता-फिरता कब्रिस्तान है
जिसमे न जाने कितनी
नाजायज़ संताने दफ़न हैं

हर कोई एक जिन्दा मकतल है
जिसमे न जाने कितने
बच्चे मारे गए हैं
जिनके दिमाग में खिलौने
मुंह पर पहाड़ा
और हांथों में बिना नोक वाली पेन्सिल थी
(आँखों की बात मैं नहीं करूँगा. मुझे बच्चों की आँखों से डर लगता है)

जब हम नाजायज़ संताने पैदा कर रहे होतें हैं
बच्चों को मार रहे होते हैं
या डायरी लिख रहे होते है
तब हम बिलकुल नंगे होते है
बिलकुल!

कटी हुई पतंगों के पीछे
हवाएं रोते हुए भाग रहीं हैं
और अपने पीछे कदमो के निशान की जगह छोड़े जा रहीं हैं
टूटी हुई चूडियाँ
ढहे हुए घर
बिकी हुई दुकानें
खून के सूखे पपडे
गुर्राती हुई भूख
फटे हुए कपड़े
टकटकी बांधे हुई आँखें
सबकुछ पिघला देने वाली सर्दी
और सबकुछ जमा देने वाली गर्मी

हवाएं अपने ही क़दमों तले रौंदी जा रही हैं
वो रोते रोते मर रहीं हैं
और मरते-मरते रो रहीं हैं

बिन हवाओं के जीना कितना सुखद होगा न !
धडकनों और साँसों की जेल से बाहर
हरे मैदान में टहलने जैसा

बेहद कमज़ोर कविता के बेहद मज़बूत हिस्से में
मैं तुमसे बता रहा हूँ
कि तुम्हारे भीतर खून की जगह
गहरे काले राज़ बह रहे हैं
और मेरे भीतर एक ख़ामोशी है
जो लगातार बोल रही है
कोई उसे चुप क्यों नहीं करता!!

एक जंगल है जहाँ आवाजों के बड़े-बड़े पेड़ हैं
और सन्नाटों के लंबे-लंबे रास्ते
मैं अकेला हूँ तुम्हारे साथ
और तुम अकेले हो मेरे साथ

इसलिए सुनो!
तुम चले जाओ
मुझे खुद से बातें करनी है
मुझे हत्याएं करनी हैं
नंगा होना है
बिलकुल नंगा
मुझे डायरी लिखनी  है
नाजायज़ संतानें पैदा करनी हैं
और उन्हें मारना है

जाओ तुम चले जाओ
मुझे साँसों के फंदों पर लटकना है
एकांत का ज़हर पीना है
और कुछ लिखते-लिखते मर जाना है

तुम्हारा--अनंत  

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

डायरी का सच या अंतरात्मा का सच ...
बहुत हो प्रभावी ...