सोमवार, मार्च 11, 2013

मन की मौत का मातम....

मैं एक रुकी हुई घड़ी के नीचे
अधखुली खिडकी पर खड़ा हूँ
बाहर सिर्फ धुआं और सपने हैं

मेरे दिमाग में आग का दरिया बह रहा है
और मन आपरेशन थियेटर हो गया है
जहाँ तितलियाँ घुस आयीं है
सारे रोगी फूल बने बैठे हैं
और डाक्टर बच्चों की तरह खेल रहें हैं

मेरा आधा हिस्सा शायर हो गया है
और आधा हिस्सा कायर है
मेरे भीतर शायर और कायर जब खींचातानी करते हैं
उस वक्त मुझे
एक पुराना कमरा दिखाई पड़ता है
जहाँ एक फूटी ऐनक फर्स पर पड़ी है
और एक हांफती हुई औरत है
जो खूबसूरत है पर लगती नहीं

वो कुहरे से बनी एक लड़की को समझा रही है कि
दुनियां रुई का फाहा
कबूतर का पंख
और साबुन का बुलबुला नहीं है
उसे एक सेकेण्ड में एक हज़ार सपने नहीं देखने चाहिए
उसे खुद को राजकुमारी
और खूबसूरत लड़कों को राजकुमार नहीं मानना चाहिए

वो लड़की कुछ नहीं मानती
और अँधेरा सबकुछ डूबा ले जाता है
और मैं पसीने में भीग जाता हूँ

पसीने का दलदल बन जाता है
जिसमे एक लड़का फंसा हुआ है
और उसके पास बैठा एक अधेड़ गांजा पी रहा है
जब लड़का फूट कर रोता है
तो वो अधेड़ फूट कर हँसता है
ये फूट कर रोना और फूट कर हंसना
मुझे तोड़ देना चाहता है

मुझे ब्रहमांड से गलियां पड़तीं हैं
मेरे शरीर से दुनिया की सबसे खराब गंध आती है
और मैं चुल्लू भर आंसू में डूब कर मर जाना चाहता हूँ

मैं दौड कर दराज़ खोलता हूँ
जहाँ चाकू के ऊपर रामायण रखी है
मैं रामायण निकाल कर बिना माथे लगाए
न जाने कहाँ फेंक देता हूँ
और ग़ालिब के दीवान से दो शेर पढ़कर
उन्हें भाप बना देता हूँ

अब तक मैं पागल हो चुका होता हूँ
दुनिया का रंग काला पड़ चुका होता है
सारे रंगों को फांसी हो गयी होती है
लोहा साँसों में बहने लगता है
और धड़कने जंजीरों से जकड जातीं हैं

मैं पाश और धूमिल को बगल में दबाकर
गोदार्द का सिनेमा देखने लगता हूँ
मुझे जाने-पहचाने चेहरों वाले अजीब लोग घेर लेते हैं

मेरे भीतर का शायर
कविता लिखने लगता है
आग लगाने लगता है
फिल्मे बनाने लगता है
चीखने-चिल्लाने लगता है
दुनिया हाथों से पलटने लगता है
और सब कुछ बदलने न जाने कहाँ चला जाता है

मेरे भीतर का कायर सबकुछ चुपचाप देखता रहता है
और रुकी हुई घड़ी के नीचे वाली
अधखुली खिडकी से कूद कर जान दे देता है

मैं वहीँ पड़ा रह जाता हूँ
जैसे जान निकलने के बाद
एक लाश पड़ी रहती है


तुम्हारा--अनंत

5 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये

आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

दुनिया तो पागलों का है ,उसमे एक और सामिल हो जाय तो फरक नहीं पड़ता ,आप भी मेरे ब्लोग्स का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

latest postअहम् का गुलाम (भाग तीन )
latest postमहाशिव रात्रि

alkesh kumar kushwaha ने कहा…

kya baat hai bhai... bahut he sundar kavita... mjhe bhi guide kariye ap... mere blog me... alkeshkk.blogspot.in par...