मेरी हसरतों को बस खार ही नसीब हुए,
फूलों को किसी और ने चुरा लिया ,
खता किसी और की क्या कहें ''अनंत''
हमने ही आंसुओं को मुकद्दर बना लिया ,
सोया कभी दर्द ओढ़ कर ,
कभी दर्द को बिचौना बना लिया ,
जिया दर्द को दिल में साथ ले कर ,
दर्द को हमने हमसफ़र बना लिया ,
लोग डरतें हैं ,हादसों से ,
हमने हादसों से दिल लगाया ,
ये हादसे ही तो थे ,
जिन्होंने हमें शायर बना दिया ,
चौक पर पर खड़ी थी शरीफों की ज़मात,
मै गुजरा उधर से आइना ले कर ,
न जाने क्यों वो बेवजह बिगड़े मुझ पर,
शायद मैंने उनको उनकी असलियत दिखा दिया ,
माँगू क्यों दुआ मै किसी पत्थर के सामने ,
किसी पत्थर दिल ने ही पत्थर को खुदा बना दिया ,
रहता था और रहता है, वो इंसानों के दिलों में ही ,
ये तो फिरकापरस्तों ने मंदिरों-मस्जिद को उसका घर बना दिया
तुम्हारा --अनंत
9 टिप्पणियां:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सार्थक और भावमयी रचना..शुभकामनाये.
बहुत सुंदर भावों को समेटे हुए आपकी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी. आभार !
मैं आप सभी श्रेष्ठ विज्ञ जनों को धन्यवाद देता हूँ जो उन्होंने मेरी रचना की प्रसंसा की और साथ दिया तथा मेरा मार्गदर्शन भी किया --आप सबका -अनंत
वंदना जी आप का धन्यवाद जो आपने मेरी कविता को चर्चा मंच में सामिल किया और इसका लिंक दे कर नए पाठकों तक मेरी रचना पहुंचाई .मैं आपका आभारी हूँ --अनंत
बहुत अच्छा अनंत जी..... बहुत सार्थक रचना है.....
apna asar chhodti ek sarthak rachna.
'रहता था और रहता है वह इंसानों के दिलों में ही'
................सत्य वचन
...............सुन्दर प्रस्तुति
खूबसूरत रचना ..
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