गुरुवार, अगस्त 01, 2013

मैं नज़्म हो गया हूँ शायद !

आज शाम शीशे में देखा, तो दिखा
मुझमे मैं नहीं, कोई और ही रह रहा है अब
कि जिसका नाम मेरे माजी* के किसी पन्ने पे लिखा
अपनी ही रूह तलाशता रहा है न जाने कब से 

न जाने कितनी बार क़त्ल किया है उसे 
न जाने कितनी बार साँसों में जलाया है 
रूह में दफनाया है उसे 
पर हर बार वो आशना* चेहरा 
उभर आया है मेरे चेहरे पर 

मैं हूँ, पर मुझमें मैं नहीं हूँ अब 
वो है, कि अब बस, वही वो है मुझमें 
तलाशता हूँ खुद को तो उसको पाता हूँ  
उसको ढूढता हूँ तो खुद तक पहुँच जाता हूँ 

मैंने रूह में दफ़न की थी जो कई नज्में 
साँसों की गर्मी में जलाया था जिन्हें 
सबने मिलकर मुझपे चढाई की है 

मैं एक किला हो गया हूँ हारा हुआ 
जहाँ नज्में, महज़ नज्में ही रहतीं हैं अब 
मैंने नज्मों को जो कभी मारा था 
सभी नज्मों नें मुझे मार डाला है 

अब मैं, मैं नहीं, नज़्म हो गया हूँ शायद 
बस इंतज़ार है 
कि कोई नज़्म आये और मुझे पढ़े नज्मों की तरह

तुम्हारा-अनंत 

*  माजी - इतिहास 
* आशना-परिचित    

6 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सही मायने में 'लोकमान्य' थे बाल गंगाधर तिलक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर नज़्म
latest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

umda najm...
khubsurat..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्रशंसनीय

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

नज़्म की भीगीं है पलकें..कोशिश में है पढने की,
आँखों का धुंधलका हटे तो सही....

अनु

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव ...बधाई
भ्रमर ५