रविवार, जनवरी 27, 2013

मैं तुमसे मिलने नहीं आता...

आधी रात के उस पार
जहाँ शोर का झरना
चुप-चाप बहता है
और एकांत के वृक्ष
लगातार बोलते रहते हैं
वहीँ तुम रोज मेरा इंतज़ार करती हो
मैं जानता हूँ

पर मैं नहीं आऊंगा
क्योंकि तुम कहोगी कि
तुम्हारी हथेलियाँ रेत की बनी हैं
और आँखें ठहरा हुआ पानी हैं
इसलिए तुम मेरी चुकती हुई नब्ज़
और पिघलता हुआ वजूद
महसूस नहीं सकती

ये कहते हुए
जब तुम हँसोगी
सच कहता हूँ मेरा मन करेगा
कि  तुम्हारी हथेलियों की झरती रेत में दब कर मर जाऊं
या फिर तुम्हारी आँखों के ठहरे हुए पानी में डूब जाऊं

पर मैं जीना चाहता हूँ
अपने शब्दों को पक्षी
कविता को आकाश
दर्द को धरती
और खुद को तुम बनाना चाहता हूँ

इसीलिए आधी रात के उस पार
जहाँ शोर का झरना
चुपचाप बहता है
और एकांत के वृक्ष
लगातार बोलते रहते है
मैं तुमसे मिलने नहीं आता

तुम्हारा--अनंत

1 टिप्पणी:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह......
न मिलने की भी वजह होती ही है....

खूबसूरत जज़्बात!!!

अनु