मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

मेरे भीतर का मर्द मार दिया जाए..............

आज बहुत शर्मिंदगी हो रही है हर उस चीज से, जो मुझसे और सबसे बिना कुछ कहे ही कह देती हैं कि मैं मर्द हूँ. मैं आज हर उस चीज को खुद से अलग कर देना चाहता हूँ जो मुझे मर्द बनाती है. क्योंकि मर्द होना जानवर होना होता है. कुछ ऐसा ही लगने लगा है मुझे, जब से दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में उस लड़की का  बलात्कार हुआ है जिसका नाम मैं नहीं जानता हूँ.पर मैं इतना जनता हूँ कि वो एक लड़की थी, एक इंसान थी, मैं ये नहीं कहूँगा कि वो एक बहन थी, एक बेटी थी, एक ये थी, एक वो थी, गंगा की तरह पवित्र थी, धरती की तरह गरिमामयी थी, और ऐसे ही अनाप-सनाप के उपमाएं मैं नहीं गढूंगा, क्योंकि मैं जान गया हूँ कि ये मर्दों की और उनकी व्यवस्था की साजिश है. एक ऐसा जाल जिसमे एक लड़की फंस कर अपना वजूद खो देती है. 

मेरे लिए वो एक लड़की थी, एक लड़की, जिसका अपना वजूद था जो हमारे आपके और किसी और के बताये हुए परिभाषिक सांचों से बहार अपना रूप-रंग, आकार, गढ़ने को अमादा थी और पूरी ताकत से लैस भी. पर एक कायरता का शिकार हो गयी. जिसे हमारा सभ्य-समाज सामूहिक बलात्कार, गैंगरेप जैसे मर्यादित नामों से जानता है. मर्यादित इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि  ऐसे ही कई प्रतापी काम करके हमारे नेता संसद के मंदिर में पहुंचे है और संविधान, क़ानून और व्यवस्था का घंटा बजा रहे  है.  

सच में आज मैं दिल से चाहता हूँ कि मुझे और इस पूरी पित्रसतात्मक व्यवस्ता को थोडा-थोडा ज़हर पिलाया जाये, थोड़ी-थोड़ी फाँसी दी जाये. थोडा-थोडा जलाया जाये, मैं चाहता हूँ कि हम सब का थोडा थोडा बलात्कार किया जाए. इस बार हमें बच कर कतई निकलने न दिया जाये. 

मैं चाहता हूँ कि वो लड़की जो पीलीभीत की रहने वाली है, जो रविवार 9:30 बजे रात से पहले ये सोचती थी कि दुनिया सुन्दर है, जिसने पढ़ रखा था कि जब किसी अबला की इज्ज़त  पर बन आती है तो भगवान कृष्ण उसकी इज्ज़त बचने के लिए आ जाते है. जो आकाश छू लेना चाहती थी. जो दिन में कम से कम 24 बार शादी के सलोने सपने देखा करती थी. जिसने G.K.  की किताब  से बचपन में ही, दिल्ली देश की राजधानी है और यहाँ पर कानून बनाये जाते है यहाँ पर संसद है, देश भर के चुने हुए अच्छे लोग (नेता) यहाँ पहुँचते है, ऐसे ही कई लघु उत्तरीय प्रश्न  रट लिए थे.

मैं चाहता हूँ कि  वो लड़की जो अभी दिल्ली के शफदरगंज  अस्पताल में वेंटिलेटर पर लेती है और किसी भी पल कोमा में जा सकती है. वो लड़की जिसने जिंदगी का असली चेहरा देख लिया है और अब कतई नहीं कह पायेगी कि दुनिया सुन्दर है. वो लड़की जिसका विश्वास और इज्ज़त लूटी गयी और कृष्ण नहीं आये और उसने कृष्ण को गीता में जितने श्लोक है उतनी गलियां और उलहने दिए होंगे  

मैं चाहता हूँ कि वो लड़की जिसके जहन में अब कोई सपना नहीं पनपेगा. जो अपने साथ घटी हकीकत से कभी बहार नहीं निकल पायेगी. वो लड़की जिसने बचपन में G.K. की किताब  से रटे सारे लघु उत्तरीय प्रश्न भुला दिए होंगे और दिमाग में लिख लिया होगा कि दिल्ली में सिर्फ दरिंदे बसते है. 

मैं चाहता हूँ वो लड़की दुर्गा, चंडी, काली, फूलनदेवी, या ऐसा ही कुछ बन कर सारे देश की औरतों की  सेना ले कर आये और  मेरे भीतर के और इस समाज के भीतर के मर्द को मार दे. 

सच कहता हूँ मैं आज उस लड़की के हांथो मर जाना चाहता हूँ. क्योंकि उसे अधिकार है कि वो हमें एक लाइन से खड़ा  करके गोली मार दे या फिर लाल किले के बुर्ज पर हमारे शीष  काट कर टांग दे. क्योंकि हम इस समाज के हिस्से है और चुप्पे भी. चुप्पी की सजा मौत होती है.  


मेरे भीतर का मर्द मार दिया जाए..............

तुम दिल्ली के किसी अस्पताल में
वेंटिलेटर पर पड़ी हो
किसी भी पल कोमा में चली जाओगी

ऐसा कहा है अखबार ने,
टीवी पर तुम जैसी एक लड़की ने
रेडियो भी कह रहा था, यही बात

सुनो! मुझे तुमसे शिकायत है
हाँ! सीता
द्रोपदी 
अहिल्या
मलाला यूसुफजई
सोनी सोरी
मनोरमा मणिपुरी 
जो भी तुम्हारा नाम हो 
मुझे तुमसे शिकायत है !

तुम वापस क्यों नहीं आती
दुर्गा, चंडी, काली
उदा पासी
फूलन देवी
या ऐसी ही कुछ बन कर

मैं चाहता हूँ 
कि मेरे भीतर के मर्द को तुम मार दो ! 
वो भी था
दिल्ली की उस चलती हुई बस में 
जहाँ तुम्हारे एहसासों के परिंदों के पर काट दिए गए 
और उनके  मरे हुए चेहरों पर लिख दिया गया 

दुनिया दरिंदों की है! 

मैं तुम्हें बुला रहा हूँ 
तुम आना जरूर आना 
और मेरे भीतर के मर्द को 
ज़हर देना 
जला देना 
फाँसी देना 
बलात्कार कर देना 
या फिर ऐसा ही कुछ जो तुम्हारे मन में आए

पर तुम आना जरूर 
क्योंकि मैं चाहता हूँ 
कि मेरे भीतर के मर्द को मार दिया जाए

वेंटिलेटर पर पड़ी मेरी दोस्त---तुम्हारा अनंत 

खबर की  लिंक


7 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

काश यही बात और लोग भी सोच और समझ सकें ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 20 -12 -2012 को यहाँ भी है

....
मेरे भीतर का मर्द मार दिया जाये ... पुरुष होने का दंभ ...आज की हलचल में .... संगीता स्वरूप


. .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ऐसी मर्दानगी पर सौ-सौ लानतें!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

अनन्त जी कविता द्रवित करती है । जो ऐसी घटनाओं पर इतने दुखी होते हैं वास्तव में दुनिया को ऐसे ही मर्दों की जरूरत है । जो स्त्री का सम्मान करें उसकी रक्षा करें । मारने की जरूरत मर्द को नही उन पिशाचों को ही है...।

Unknown ने कहा…

aag lage aisi mardangini me

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

आप जैसे कई पुरुष हैं, जो ये दर्द समझते हैं ! ऐसे ही लोगों की आज देश में ज़रूरत है....

vandana gupta ने कहा…

अपने इस दर्द के साथ यहाँ आकर उसे न्याय दिलाने मे सहायता कीजिये या कहिये हम खुद की सहायता करेंगे यदि ऐसा करेंगे इस लिंक पर जाकर

इस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#

कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं