शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

मजूरा जानता है......

तनी भृकुटी पर
अनमने से मन की
बलि दे कर
फिर से लग गया था काम पर
हाड-मांस की काया है
मशीन नहीं है बाबू जी !..
ये भी नहीं कह सका
क्योंकि जवाब का जूता
खा चुका था कई बार 
तुम नहीं तो कोई और सही
बहुत हैं काम करने को
कामचोर! कहीं के......
कहा जोर से
 मालिक ने
 सुना दुनिया ने


 सुगबुगाते हुए
 अपने आक्रोश और चीख को
धैर्य और विवशता की
काली पहाड़ी के पार
 खूँटे से बाँध कर
 बुदबुदाया मजूरा !
 तुम जैसे ही हैं सभी
 बहुतों के यहाँ करा है काम
 दामचोर! कहीं के....
 कहा  अपने ही मन में
 सुना मजूर ने


 मजूर कामचोर है
दुनिया जानती है
 मालिक दामचोर है
 मजूरा जानता  है


(क्योंकि दुनिया मन की आवाज़ नहीं सुन सकती .....)
तुम्हारा--अनंत 

7 टिप्‍पणियां:

Aman Kumar Beriwal ने कहा…

Nice one

Aman Kumar Beriwal ने कहा…

nice one

Smart Indian ने कहा…

बहुत सही.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_11.html

Arun sathi ने कहा…

मालिक दामचोर है,
मजूरा जानता है,

एक यथार्थ,

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

dardbhari magar sateek rachna! shukriya

gaurav ने कहा…

anant tum accha likhte ho. yun hi likhte raho , gaurav asri