कई बार आदमी कुछ कहना चाहता है पर कुछ कह नहीं पाता,ये कुछ न कह पाना उसे बहुत कुछ कहने के लिए मथ देता है,उस वक़्त उस आदमी की स्तिथि त्रिसंकू की तरह होती है वो ''कुछ'' और ''बहुत कुछ'' के बीच ''कुछ नहीं'' को नकार कर खुद से ''कुछ-कुछ'' कहने लगता है |ये ''कुछ-कुछ'' वो अपने दिल से कहता है| अक्सर ये खुद से कुछ-कुछ कहना ही सच्चा कहना होता है | क्योंकि आदमी सुबह से शाम तक जाने-अनजाने वो कहता-करता रहता है जो वो न कहना चाहता है न करना | लोग खुद से कुछ-कुछ कहने को बडबडाना कहते है ...मैं इसे सच की आवाज़ कहता हूँ | जब कभी मैं भी सच कहने पर आता हूँ तो बडबडाता हूँ|
मैं अकेला नहीं हूँ जो बडबडा रहा हूँ, मुझसे पहले भी निराला,मुक्तिबोध,नागार्जुन,पाश,शमशेर,त्रिलोचन,केदारनाथ अग्रवाल जैसे अनेक लोग बडबडाते हुए पाए गए है,जिन्होंने कविता के बंध काट कर उसे बडबडाते हुए आज़ाद किया और साथ ले कर अभिव्यक्ति की कांटे भरे पथ पर चल निकले शान से........ मैं भी चलना चाहता हूँ उसी राजपथ पर जिस पर चल कर कांटो का हार मिलता है,मैं भी बडबडाना चाहता हूँ ,मैं झूठ के अलावा भी कुछ कहना चाहता हूँ |
( 1 ) काश बापू तुम्हारा नाम ''गाँधी'' न होता
गाँधी जी से प्रेम है मुझे,
आदर की लहलहाती फसल जो बोई गयी है,
हमारी शिक्षा के द्वारा,
फसल की हर बाली,
चीख चीख कर कहती है,
''गाँधी जी'' राष्ट्रपिता हैं,
मैं भी कहता हूँ,
''गाँधी जी'' राष्ट्रपिता है,
क्योंकि मुझे भूखा नहीं रहना,
या यूं कि मैं भूखा नहीं रह सकता,
''गाँधी'' रोटी है ,सूखी रोटी,
मगर ये भी सच है कि गाँधी जी का नाम सुनते ही,
मेरे मन में भर जाता है, एक लिजलिजा सा कुछ,
शायद सांप या फिर अजगर,
सांप होगा तो डसेगा,
अजगर होगा तो लील लेगा,
गाँधी जी के नाम में गांधारी छिपी है,
जो अंधे ध्रतराष्ट्र की पट्टी खोलने के बजाये,
स्वयं अंधी पट्टी बंध लेती है,
ऑंखें इच्छाएँ पैदा करती है,
ध्रतराष्ट्र अँधा था उसकी कोई इच्छा भी नहीं थी,पर गांधारी की आँखें भी थी और इच्छाएँ भी,
जो अंधी पट्टी के पीछे कोहराम मचाये रखती थी,
मुझे लगता है कि ''गाँधी'' गाँधी न होते,
गर उनका नाम ''गाँधी'' न होता,
इस ''गाँधी'' नाम ने उन्हें,
गांधारी बना डाला,
और राष्ट्र को ध्रतराष्ट्र,
(2) बापू तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर
बापू तुमने कभी हिंसा नहीं की,
सब कहते है,
सब कहते है,
पढ़ते है,
जानते है,
सीखते है,
सब के सब झूठे हैं,
मुझे माफ़ करना बापू !
मैं ये सच कहूँगा,
कि तुमने बहुतों को मारा है,
मरवाया है,
विदर्भ में हजारों किसानों ने फाँसी लगा ली,
क्योंकि तुम्हारी हरे पत्तों पर छपी,
मुस्कुराती तस्वीर नहीं थी उनके पास,
झारखंड में 5 साल का छोटू ,
क्योंकि उसकी विधवा माँ के पास,
तुम्हारी मुस्कुराती हुई तस्वीर नहीं है,
तुम्हे मालूम है ?
कि तुम्हारी चंद मुस्कुराती हुई तस्वीर पाने के लिए,
रोज तन बेचती है,
देश की हजारों-हज़ार बच्चियां.....माएं,
देश की हजारों-हज़ार बच्चियां.....माएं,
क्या करें पेट भरने के लिए,
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर जरूरी है,
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर जरूरी है,
बारह साल का कल्लू जेल में बंद है,
कसूर रेल में पानी की बोतल बेच रहा था,
घर में बीमार माँ-बाप और विकलाँग भाई की दवा करने के लिए,
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीरों की जरूरत थी उसे,
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीरों की जरूरत थी उसे,
पुलिस ने पकड़ा,
और तुम्हारी उतनी तस्वीरें मांगी,
जितनी वो एक महीने में इकठ्ठा करता था,
नहीं दे पाया .....कल्लू
तो तुम्हारी मुस्कुरती हुई तस्वीर के निचे बैठ कर,
मजिसट्रेट ने 6 साल की सजा सुनाई दी उसे,
तुम हत्यारे थे कि नहीं,
मुझे नहीं मालूम,
पर तुम्हारी तस्वीर हत्यारी है,
तुम निष्ठुर-निर्दयी थे कि नहीं,
मुझे नहीं मालूम,
पर तुम्हारी तस्वीर निष्ठुर और निर्दयी है,
तुम पक्षपाती थे कि नहीं,
मुझे नहीं मालूम,
पर तुम्हारी तस्वीर पक्षपाती है,
तुम हिंसक थे की नहीं,
मुझे नहीं मालूम,
पर तुम्हारी तस्वीर हिंसक है,
तुम्हे पाने के लिए गरीब अंपने तन से ले कर मन तक बेच देता है,
पर तुम उसके हक के बराबर भी उसे नहीं मिलते,
चले जाते हो,सत्ता के गलियारे में ,
ऐस करने, या कैद होने,
मुझे नहीं मालूम,
तुम्हारी हँसती हुई तस्वीर से चिढ है मुझे,
थाने से लेकर संसद तक जहाँ भी मेहनतकशों पर जुल्म ढाए जाते है,
तुम हँसते हुए पाए जाते हो,
जब गरीब तुम्हारी कमी से,
अपना मन कचोट रहा होता है,
अपना मन कचोट रहा होता है,
तुम हँसते मिलते हो,
जब किसी गरीब को,
उसके बौनेपन का एहसास होता है,
और जब इनसान होने का सारा वहम टूट जाता है
उसी पल तुम उसे मार देते हो,
मुझे भी तुमने इसी तरह कई बार मारा है ,
बापू मैंने सुना है कि,
तुम्हे गुस्सा नहीं आता,
गुस्सा मत करना,
मुझे कुछ कहना है (तुम चाहो तो इसे मेरा बडबडाना भी कह सकते हो)
अगर तुम्हारी तस्वीर ऐसी है,
तो तुम कैसे होगे ????????.......
(ये क्या कह दिया मैंने ....हे राम !!!......................मृत्यु )
गाँधीजी.......तुम्हारा-- अनन्त
12 टिप्पणियां:
रोंगटे खड़े कर देने वाली प्रस्तुति.
कड़वी कवितायेँ सोचने पर मजबूर कर रही हैं ... मन का आक्रोश जब कोई नहीं समझ पाता तो कहीं न कहीं तो निकलता ही है ... आपकी रचना पर एक प्रत्युत्तर मेरा भी ---
गांधी ने नहीं कहा था कि
छाप दो उनकी तस्वीर नोटों पर
और करो दुरूपयोग
देखती होगी
जब बापू की आत्मा
अपनी ही मुस्कुराती तस्वीर
जिसके न होने से पास
किसान कर रहे हैं
आत्महत्या
छोटू पाल रहा है
अपनी ही लाश
न जाने कितनी बच्चियां
करती हैं
देह व्यापार
और न जाने
कितने कल्लू
सड़ रहे हैं जेल में
बिना कोई अपराध किये ..
करती होगी चीत्कार
जिसकी आवाज़
नहीं जाती किसी के
कान में
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए .
इतनी भावप्रवण कविताएं हैं कि इनकी कड़वाहट में भी एक खूबसूरती है, जो सिर्फ दिल नहीं बहलाती, कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है। संगीता जी का शुक्रिया कि उनके ब्लॉग से आपके ब्लॉग का लिंक मिला।
गांधी ने नहीं कहा था - मेरी फोटो छापकर
मेरे अस्तित्व को हिंसक बना दो .... गौर करो , कागज़ पर लाश है , जिसकी आड़ में हत्याएं हो रही हैं .
कागज़ पर एक पागल है , जो तुम्हारे बडबडाने सा हँसता जा रहा है !
भावप्रवण कड़वी कविताएं, खूबसूरत
hamesha ki tarah bahut achha likha hai Anurag!!! Gandhi naam ki mahima kya kya rang dikhayegi khud shayad Gandhi ji ko bhi andaza nhi tha.
Bapoo ko kahan pata tha ki us ki tasveer chaapne wale itna ganda majak karenge unke Saath ...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_1994.html
ओह! एक नंगा सच जिसे छूने का सबमें मददा नहीं, आभार आपका और ब्लॉग बुलेटिन का भी जिसने मुझतक पहूंचाया।
गांधी ने नहीं कहा था - मेरी फोटो छापकर
मेरे अस्तित्व को हिंसक बना दो .... गौर करो , कागज़ पर लाश है , जिसकी आड़ में हत्याएं हो रही हैं .
कागज़ पर एक पागल है , जो तुम्हारे बडबडाने सा हँसता जा रहा है !
सौफी सदी सच ....जितनी सशक्त और कड़वी रचना आपकी है उतना ही सच लिखा है रश्मि जी ने आफ्नै टिप्पणी में मैं पूर्णतः सहमत हूँ उनकी बातों से...
गाँधी जी की कविता..................................... तुम गरीब हो लेकिन मत जाना इस दुनिया से गरीब तुम गरीब मत जाना इस दुनिया से अरे ओ गरीब तुम कहते हो मेरी सिर्फ मेरी मुस्कुराती हुई तस्वीर के बारे में मेरे संस्कारों को क्यूँ फिर से नहीं दुहराते हो या सिर्फ मेरे से सम्मिलित कुछ कवितायेँ ही लिखते हो और मेरा मखौल उराते हो मेरे जाने के बाद खुद अहिंसा वादी गाँधी न बन सकते हो तो मेरे नाम से जोरकर एक कविता ही रच डालते हो मत जाना इस दुनिया से गरीब अरे ओ गरीब ....
गाँधी जी की कविता..................................... तुम गरीब हो लेकिन मत जाना इस दुनिया से गरीब तुम गरीब मत जाना इस दुनिया से अरे ओ गरीब तुम कहते हो मेरी सिर्फ मेरी मुस्कुराती हुई तस्वीर के बारे में मेरे संस्कारों को क्यूँ फिर से नहीं दुहराते हो या सिर्फ मेरे से सम्मिलित कुछ कवितायेँ ही लिखते हो और मेरा मखौल उराते हो मेरे जाने के बाद खुद अहिंसा वादी गाँधी न बन सकते हो तो मेरे नाम से जोरकर एक कविता ही रच डालते हो मत जाना इस दुनिया से गरीब अरे ओ गरीब ....
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