गुरुवार, अक्तूबर 13, 2011

खेत में घुट रहा हैं ,हिंद का किसान ,

हे मेघ तू मेरे प्राण बचा ले .................
खेत में घुट रहा हैं ,हिंद का किसान ,
जिन्दगी से हार कर, त्यागता है प्राण ,
धरणी पर रूप हरी का विपन्न है ,
जो खून इसका चूसता है,वो परजीवी प्रसन्न है ,
खादी में वो है लिपटा ,बैठा है गद्दी चापे ,
फैला हुआ हैं कितना ,अब कौन उसे  नापे ,
मजबूर हो गए सब हलधारी बलराम , 
गूंजता कहीं नहीं जय जवान ,जय किसान ,
खेतों में घुट रहा ,हिंद का किसान .............
खलियान में हैं मातम खेत खाली पड़े  हैं ,
क़र्ज़ हुआ भारी इन्द्र भी रूठे खड़े हैं ,
धरती पुत्र धरती गगन निहारता हैं ,
व्याकुल हो कर हे मेघ! पुकारता हैं ,
आँखें हुई बंज़र ,धड्काने थक गयी हैं ,
अधरों पर हँसी की सरिता रुक गयी हैं ,
बूढा था वो पहले ही, अब टूट ही  गया है,
बढ़ते हुए भारत में कृषक छूट ही गया है ,
लड़ रहा हैं वो आज पाने को सम्मान ,
खेतों में घुट रहा हैं हिंद का किसान ,
जिन्दगी से हार कर त्यागता हैं प्राण ...............

तुम्हारा --अनंत

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