रविवार, मार्च 13, 2011

ख़त

एक ख़त लिखा था ,
बस एक 
शायद आंसू  से लिखा था ,
तभी मेज पर पड़ा पड़ा रोने लगता है ,
फूट -फूट कर बिखर जाता है ,
हर्फ़ - हर्फ़ जोड़ कर ,
समेत कर ,सहेज कर ,
रख देता हूँ ,बिठा देता हूँ ,
बच्चे  की तरह हँसने लगता है फिर ,
और फिर
 कभी -कभी नादानी भरा सवाल पूछता है,
 प्यार किसे कहते हैं ?
मैं नहीं बता पता हूँ ,
तो फिर से वो रोने लगता है ,फूट- फूट  कर ,
बिखर जाता है ,
फिर हर्फ़ -हर्फ़ जोड़ कर बिठा देता हूँ,
 बच्चे की तरह ,
तुम्हारा --अनंत 

कोई टिप्पणी नहीं: