मंगलवार, नवंबर 01, 2011

हमारे पसीने से

अमीरों के महलों में में रोशनी है ,हमारे पसीन से ...............

अमीरों के महलों में में रोशनी है ,हमारे पसीने से ,
खामोस हैं सभी मुफलिस फ़क़त मतलब है जीने से ,
रोटी दो वक़्त की मिल जाये शान  से,
इससे बढ़ कर और क्या माँगे भगवान से,
हँसी , ख़ुशी, प्यार के अल्फ़ाज,
नगमे, तराने,बजते हुए साज,
कहाँ नसीब हैं हम बदनसीबों को ,
दुनिया इंसान कहाँ समझती है हम गरीबों को,
ताक़तवर कभी नहीं चूकता मजलूमों को दबाने से ,
अमीरों के महलों में रौशनी है हमारे पसीने से ............

त्योहारों की टीस-ओ- कसक, उलझन-ओ-मसायल ,
हम तो होते हैं रोज़ सुबह-ओ-शाम घायल ,
घुटते हैं बहार-ओ-भीतर ,लाचार हो कर ,
वो बना बैठा है मुन्सिफ गुनहगार हो कर ,
इंसाफ़ की तमन्ना भी अब बेमानी है ,
मुँह में आह, दिल में दर्द, आँखों में पानी है,
फिर भी हम मुफलिसों की दरियादिली तो देखिये ,
हँस कर कहते हैं अब क्या होगा रोने से ?    
अमीरों के घर में रौशनी है हमारे पसीने से ,
खामोस हैं सभी मुफलिस फ़क़त मतलब है जीने से........

तुम्हारा --अनंत 

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक और यथार्थ को कहती अच्छी प्रस्तुति

mridula pradhan ने कहा…

wah....bahot khoobsurat bhaw hain.....