करवट
रविवार, अप्रैल 17, 2011
माँ की हाथों की रोटियाँ
जब से घर से
आया हूँ,
परदेश ,
भूँखा हूँ,
खाना तो खाता हूँ,
पर पेट नहीं भरता ,
घर जाऊं ,
माँ के हाथों की रोटियाँ खाऊँ,
तो भूँख मिटे ,
''कमबख्त ये भूख,
माँ बेटे को अलग कर देती हैं''
''तुम्हारा -अनंत ''
''माँ की याद में ''
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