मनुष्यता के पक्ष में, हे! मनुज तुम प्राण दो ,
हो विजय मनुष्यता की, पाशविकता का विनाश हो ,
मुक्त हो ये अखिल अवनि ,मुक्त ये आकाश हो ,
घोर- रोर- शोर-घनघोर -बरजोर हो ,
शोषण के विरुद्ध विरोध पुरजोर हो ,
तम के सकल बंध टूटे ,ऐसी ज्योति की हिलोर हो ,
प्राण की आहूतियों से मनुष्यता की भोर हो ,
जो रुदन लिप्त नयन हैं ,उदार विकल रिक्त हैं ,
ऐसे अंतिम व्यक्तियों के, अधर पर मुश्कान दो ,
मनुष्य हो तो मनुष्य होने का प्रमाण दो ,
मनुष्यता के पक्ष में हे! मनुज तुम प्राण दो ,
हवन कुंड क्रांति का, तू त्याग हवी डाल दे ,
पंक फसी मानवता निज श्रम से तू निकल दे ,
व्याकुल कंठ, विकल उर उसके ,हे! तरुण उसे अनुराग दे ,
क्यों हो रहा तू खंड- खंड निज स्वार्थ के प्रहार से ,
मुक्त कैसे हो गया तू मात्र भूमि प्यार से,
जिस बलि वेदी पर चढ़ कर ,वीर शहीदों ने प्राण लुटाए थे ,
तुम भी उस पर चढ़ कर अपना जीवन दान दो ,
मनुष्य हो तो मनुष्य होने का प्रमाण दो ,
मनुष्यता के पक्ष में हे मनुज तुम प्राण दो ,
तुम्हारा --अनंत
1 टिप्पणी:
Nice post.
जिस बलि वेदी पर चढ़ कर ,वीर शहीदों ने प्राण लुटाए थे ,
तुम भी उस पर चढ़ कर अपना जीवन दान दो ,
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