बुधवार, मई 01, 2019

मेरी उपस्तिथि..!!

मेरी उपस्तिथि ऐसी रही
कि अनुपस्थित ही रहा सदा
प्राथनाएं मुझसे निकल कर
मुझमें समातीं रहीं
और मौन ही रही मेरी सबसे सार्थक परिभाषा

भाषा में अव्यक्त रहा
और बोलकर कई कई बार ख़ुद को नष्ट किया
समझदारों की तरह जीने से बचने की जिद्द में
समझदारी ही हाँथ लगी हर बार

जीवन भर दुहराई जाती रही
एक ही कत्थई त्रासदी
और मैं एक ही बिन्दु पर
हर बार कील की तरह ठोंक दिया गया

जब जलेगी मेरी चिता तो
अलिखित प्रेम पत्र महकेंगे
धुएं की जगह तुम्हारी स्मृतियाँ उड़ेंगी आकाश में
वर्षा होगी और बदल गरज कर कहेंगे
तुमने मुझे सदैव ग़लत ही समझा
तुम मुझे कभी नहीं समझे !!

पीड़ा कुछ नहीं है
शिवाय सांस और धड़कन के

मैंने हर आख़री बात इसलिए कही
कि पहली बात दुहरा सकूं।

अनुराग अनंत